नानी के घर ने संजो रखी हैं शरत की यादें… भागलपुर से है खास कनेक्शन! यहीं लिखी थी देवदास

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 जब-जब देवदास का जिक्र होगा तो शरद चंद्र चटोपाध्याय याद आएंगे और जब शरद चंद्र याद आएंगे तो भागलपुर का जिक्र होगा. क्योंकि शरद चंद्र ने उपन्यास लिखना यहीं से शुरू किया था. उनकी महान कृति में से एक देवदास भी भागलपुर में ही लिखी गई थी. भागलपुर उनका ननीहाल है. यहां पर उनका बचपन गुजरा है. यहीं से वह महान साहित्यकार बने. आज हिंदी दिवस आपको महान कथाकार शरद चंद्र चट्टोपाध्याय से जुड़ी कुछ अहम जानकारी देते हैं.

भागलपुर में शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय की नानी का घर है. मूल रूप से वह बंगाल के रहने वाले थे. माणिक सरकार घाट के समीप सबसे पुराना भवन प्रख्यात बांग्ला कथा शिल्पी शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय के परनाना का है. उनके ममेरे भाई उज्जवल गांगुली और शांतनु गांगुली ने बताया कि करीब 200 साल पुरानी यह हवेली है. हम लोग 5वीं पीढ़ी से यहां रह रहे हैं. उनके यादों को संजोए हुए हैं. उज्जवल गांगुली ने बताया कि यहां पर पढ़ने लिखने का माहौल था. इसलिए शरद चंद्र को पढ़ने के लिए नानी घर भेज दिया गया था. बहुत छोटी उम्र में वह यहां आए और अपनी पढ़ाई यहीं से प्रारंभ की. भागलपुर के दुर्गा चरण स्कूल में उनकी पढ़ाई हुई छठी कक्षा के बाद उन्होंने प्राइवेट स्कूल में शिक्षा लेनी शुरू की. उनकी उच्च शिक्षा भागलपुर के टीनजे कॉलेजिएट से हुई. वहीं, उन्होंने बताया कि जब यहां से वह चले गए तो हर बार भागलपुर वह जगाधत्री पूजा में आते थे. सबसे खास बात उनके पास सिर्फ लिखने की ही कला नहीं थी, बल्कि कई वाद्य यंत्र भी वह बजा लेते थे.

मंदिरा शीर्षक से लिखी थी पहली कहानी 

गांगुली बाड़ी के नाम से जाना जाने वाला भवन में ही उन्होंने अपनी पहली किताब मंदिरा नाम से लिखी थी. लेकिन उन्हें यह लग रहा था कि लोग हमें क्या कहेंगे, इसलिए उन्होंने अपने नाम से प्रकशित न करवा सुरेंद्र मामा के नाम से प्रकाशित कराई थी. इनकी धीरे-धीरे लिखने की रुचि बढ़ने लगी. चोरी छुपे देवदास उपन्यास लिखना शुरू किया. इसी पर आधारित फिल्म भी बनी. लोग आज भी उस फिल्म को खूब पसंद करते हैं. आपको बता दें कि 17 सितंबर को उनकी जयंती भी मनाई जाती है. इस दौरान इस वर्ष शरत चंद्र के नाम से गेट भी बनाकर तैयार किया जाएगा.

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