नालंदा के इस मजार पर लगे नीम के पत्ते के हैं दो स्वाद, एक कड़वा तो दूसरा मीठा

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नीम का पत्ता अपनी कड़वाहट के लिए जाना जाता है. लेकिन नालंदा के इस जगह लगे एक ही नीम के पेड़ के पत्ते दो स्वाद देते हैं. एक कड़वा और दूसरा मीठा..नालंदा मुख्यालय बिहार शरीफ के बेलछी गांव में विश्व के दूसरे सबसे बड़े बुजुर्ग ख्वाजा मोईन उद्दीन चिश्ती (अजमेर शरीफ वाले बाबा) के उस्ताद हजरत उस्मान हारून चिश्ती का मजार है. जहां एक विशालकाय नीम का दरख्त है. उस दरख़्त की खासियत यह है कि उस पेड़ के सभी डाल के टहनी का पत्ता कड़वा लगता है, लेकिन एक टहनी जो उस्ताद हज़रत हारून चिश्ती की मजार के ऊपर है, उसका पत्ता मीठा है.

साथ ही पेड़ के बगल में एक कुआं भी है जिसका पानी समुद्र से भी नमकीन है. कहा जाता है कि जो पेट में दर्द रहने पर उस पानी को पीता था, उसका दर्द ठीक हो जाता था. लेकिन हाल ही के वर्षों से उस जगह मस्जिद में जगह कम होने की वजह से ढक दिया गया है. लेकिन उसके बगल में दो चापाकाल और एक बोरिंग है उसका पानी मीठा है. जो इस्तेमाल में आता है.

हर साल लगता है उर्स, इन जगहों से आते हैं लोग

हर साल लगता है उर्स, इन जगहों से आते हैं लोग
आपको बता दें कि हर साल यहां उर्स के मौके पर मेला लगता है, जहां सूबे के अलावा आस पड़ोस के झारखंड, बंगाल उड़ीसा, यूपी और दिल्ली से जायरीन यहां मत्था टेकने आते हैं. जिसे गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल बताते हैं. यहां हर साल लगने वाले दो दिवसीय 827वें उर्स की शुरुआत हो गई है और मेला भी लगता है. शनिवार को दोपहर की नमाज के बाद पूजा, असर की नमाज के बाद लंगर और मगरिब की नमाज के बाद हजरत की मजार पर चादरपोशी के साथ उर्स की शुरुआत होती है.पहले दिन केवल मजार के खुद्दाम सैयद सुजा उद्दीन मोहम्मद, सैयद नौशाद अहमद, सैयद शाहिद ईमाम, सैयद आरिफ रजा व अन्य ने चादरपोशी की. हालांकि, शाम चार बजते ही अकीदतमंदों की भीड़ से पूरा बेलछी शरीफ गांव भर जाता है.कहते हैं जानकार, यह उनकी रहमत है
इस मजार के जानकार व स्थानीय ग्रामीण खुद्दाम सैयद सुजा उद्दीन मोहम्मद बताते हैं कि बाबा हजरत उस्मान हारून चिश्ती रह. की मजार के करिश्माओं में सबसे बड़ा यह है कि मजार के सिरहाने में सदियों पुराना एक नीम का पेड़ है. उसकी टहनियां चारों दिशाओं में फैली हुई हैं और उसकी एक शाख मजार पर झुकी है. सबसे हैरत की बात यह है कि पूरे पेड़ का पत्ता अन्य नीम के पत्तों की तरह कड़वा और कसैला होता है. लेकिन, मजार पर लटके डाल के पत्ते बिल्कुल मीठे होते हैं. लोग इनकी दास्तां सुनकर हैरत हो जाते हैं.

 

800 साल से अधिक पुराना है मजार
जानकार खुद्दाम सैयद सुजा उद्दीन मोहम्मत ने बताया यह पेड़ उनकी शिष्य ने करीब 500 साल पहले लगाया था. उनका भी मजार बाबा के पैर के नीचे है. कहा जाता है की यह एक डाली तोड़कर लगाया गया था. उन्होंने कहा की हर वर्ष उर्दू की 14 व 15वीं तारीख को बाबा हजरत उस्मान हारून चिश्ती की मजार पर उर्स का आयोजन होता है. लेकिन, यहां हर दिन श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. इसी कारण उर्स के अलावा अन्य दिनों में भी काफी संख्या में हिन्दू भाई न केवल मजार पर अपनी मन्नतें मांगते हैं बल्कि, अपनी श्रद्धा के फूल भी न्योछावर करते हैं. इनकी मजार पर आकर श्रद्धा के फूल चढ़ाते हैं.मेले में आए लोगों कामानना है कि बाबा की बुजुर्गी व करिश्माई ताकत की कोई एक मिसाल नहीं है. उन्होंने बताया की बाबा का मजार 800 सालों से अधिक पुराना है.

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