नहीं थम रहा अंग्रेजी अफसरों की कब्र खोदने का सिलसिला, इस कारण लोग कर रहे हैं यह काम; हैरान कर देगी वजह

जानकारी

आधुनिक पूर्णिया को आकार देने में बहुमूल्य योगदान देने वाले अंग्रेज अफसरों और उनके परिजनों की कब्र को खोदने का काम लगातार किया जा रहा है। शहरी क्षेत्रों में कई जगहों पर अंग्रेजों की कब्र काफी सुंदरता और साफ-सुथरी तरीके से बनी हुई है। लेकिन नशेड़ी असामाजिक तत्वों और भू माफियाओं के द्वारा इस तरह के अंग्रेजों की कब्र खोदकर उसके अस्तित्व को मिटाने का काम किया जा रहा है।

लोगों में ऐसी धारणा और अफवाह है कि अंग्रेजों ने अपने पूर्वजों को दफनाते समय काफी महंगे आभूषण, हीरे जवाहरात, पत्थर, सोने-चांदी एवं कई अन्य बहुमूल्य सामान कब्र के अंदर रखे हैं। इस वजह से भी लोग कब्र खोदकर ऐसी सामग्री ढूंढने का प्रयास कर रहे हैं। 1770 से 1947 के बीच तैनात रहे अंग्रेज अफसरों और उनके परिजनों को मृत्यु के बाद पूर्णिया शहर के चार कब्रिस्तान में दफनाया गया था। जेराड गुस्तावस डुकोरल के पहले कलेक्टर बनने के साथ ही 1770 में पूर्णिया पूर्ण जिला बन गया था। इसके बाद अंग्रेज यहां बड़े-बड़े घर बनाने लगे और परिवारों के साथ रहने लगे थे। बताया जाता है कि आजादी के कई सालों के बाद तक पूर्णिया में अंग्रेज थे जो धीरे-धीरे कर अपने वतन लौट गए।

चारों तरफ नदी रहने की वजह से अंग्रेजों की पहली पसंद पूर्णिया

पूर्व में पूर्णिया के एक तरफ कोसी दूसरी तरफ गंगा तो पूरब की तरफ गंडक नदी बहती थी। कालांतर में कोसी खगड़िया के पास बहती थी। इस वजह से पूर्णिया अंग्रेजों के रहने के लिए पहली पसंद हुआ करता था। बांग्लादेश, नेपाल की सीमा पर स्थित पूर्णिया में भारी संख्या में अंग्रेज रहते थे। यही वजह है कि पूर्णिया के खासकर शहरी क्षेत्रों में अलग-अलग जगहों पर बड़े क्षेत्रफल में अंग्रेजों की कब्र आज भी मौजूद है। वहां सुंदर शिलापट्ट भी लगे हैं जिसमें कई तरह की जानकारियां लिखी हैं।

शहरी क्षेत्रों में करीब 300 की संख्या में अंग्रेजों की कब्र है लेकिन इनमें से अधिकांश को खोद दिया गया है। ऐसे पुराने शिलापट्ट को उखाड़कर लोग अपने घरों में अन्य कार्यों में उपयोग कर रहें हैं। शराबबंदी कानून लागू होने के बाद स्मैक सेवन करने वाले लोगों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। नशेड़ी ऐसी जगह पर जाकर काफी महफूज महसूस करते हैं। समाजसेवी बीके ठाकुर बताते हैं कि अंग्रेज कब्र वाली जगह को कोर्ट कहते थे। वर्तमान में जिले के अधिकांश कोर्टयार्ड भू माफियाओं के उदर में समा गए हैं। वर्तमान में किसी अंग्रेज को कब्र देने की नौबत आएगी तो ढूंढने से भी कोर्टयार्ड नजर नहीं आ रहा है।

सीमांचल के ईसाई पूर्णिया आते हैं शव दफनाने

सीमांचल के अररिया, कटिहार, पूर्णिया और किशनगंज में बसने वाले ईसाई समुदाय के लोगों की मौत होने पर पूर्णिया में ही आकर शव को दफनाते हैं। वर्ष 2020-21 में अररिया और किशनगंज में मौत होने के बाद काफी जद्दोजहद के बाद परिजनों ने पूर्णिया में ही आकर शव को दफनाया था। समाजसेवी विजय श्रीवास्तव बताते हैं कि अन्य समुदाय की तरह ही ईसाई को भी अपने ऐतिहासिक धरोहरों को संजोने के लिए आगे आने की जरूरत है। सरकार के भरोसे ही बैठे रहने से सब कुछ संभव नहीं है। पूर्णिया के कई कोर्टयार्ड इतिहास को समेटे हुए हैं। इस मामले को लेकर संजीदा होने की जरूरत है। समय-समय पर ऐसे कोर्टयार्ड का रंग रोगन साफ-सफाई होने से असामाजिक तत्व के लोग कुछ भी करने से परहेज करेंगे।

प्रतिदिन हो रही अंग्रेजों के कब्र की निगरानी

इस मामले को गंभीरता से लेते हुए पुलिस अधीक्षक दयाशंकर के द्वारा संबंधित थानाध्यक्षों को ऐसी कब्र पर विशेष निगरानी रखने को लेकर दिशा नर्देश दिया है। पुलिस के गश्ती दल को भी ऐसे चिन्हित कब्र के पास जाकर देखने के लिये कहा गया है। एसपी ने बताया कि फादर के द्वारा यदि किन्हीं के खिलाफ लिखित आवेदन दिया जाएगा तो मामला दर्ज कर कठोर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इस मामले की लगातार मॉनिटरिंग की जा रही है।

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