लोक आस्था का महापर्व छठ का बिहार में काफी ज्यादा महत्व है. यही वजह है कि प्रदेश से बाहर रहने वाले लोग भी इस पर्व में अपने घर आना चाहते हैं. इस पर्व में नदी तालाब का भी विशेष महत्व होता है. क्योंकि किसी नदी या तालाब में खड़ी होकर महिलाएं सूर्य देवता को अर्घ्य देती है. ऐसा व्रत करने वाली महिला दो बार सूर्य देव को अर्घ्य देती हैं.
एक संध्या के समय और एक प्रातः अर्घ्य के वक्त. लेकिन इन दिनों एक प्रचलन चल चुकी है कि लोग अपने घर के आगे गड्ढे खोदकर उसमें सूर्य उपासना का पर्व छठ मना लेते हैं. यह कहां तक सही है इस पर विशेष जानकारी मिथिला के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य डॉ. कुणाल कुमार झा ने दी.
जान लें किस तरह के नदी और तालाब में करें छठ
ऐसा करने वाले व्यक्ति जान लें किस तरह के नदी और तालाब में इस व्रत को किया जाना चाहिए. ज्योतिषीय शास्त्र के मुताबिक किन नदी, तालाब में छठ पर्व करना उचित है और किस जगह अनुचित है. इस पर कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के विभाग अध्यक्ष डॉ कुणाल कुमार झा का कहना है कि जो प्राकृतिक नदी है जैसे गंगा, जमुना, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु, कावेरी, कमल, जीवछ, बागमती यह प्राकृतिक नदियां हैं और इसमें धारा हर वक्त परवाह होती रहती है, इस तरह की नदी में छठ व्रत करना चाहिए.
घर के आगे गड्ढा खोदकर छठ व्रत करना बिल्कुल अनुचित
वहीं आगे ज्योतिषाचार्य का कहना है कि जो लोग अपने घर के आगे गड्ढा खोदकर छठ व्रत काअर्घ्य देते हैं, वह बिल्कुल अनुचित है. क्योंकि छठ व्रत सूर्य की उपासना का व्रत होता है और इसमें जल में खड़े होकर भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया जाता है. ऐसे में प्रभावित प्रवाहित नदी या फिर जिस तालाब का विधिवत पूजन होकर जाठ गड़ा गया है, उस तालाबों में आप इस पर्व को कर सकते हैं. जिस तरह से लोग गड्ढे में करते हैं वह बिल्कुल अनुचित होता है.
बहती नदी में इसको करने का वैज्ञानिक कारण भी
आगे ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि इसमें वैज्ञानिक कारण भी है सूर्य के लाल किरणें जो होती है, उसको नदी की धाराएं अपने अंदर धारण कर लेती है. मनुष्य के नेत्र में ऐसा तत्व होता है की नदी से उस लाल किरण को अपने अंदर धारण कर लेता है. जिससे कई सारी बीमारियों से मुक्ति मिल जाती है. जैसे हड्डी से जुड़ी बीमारी नेत्र से जुड़ी बीमारी आत्म बल बढ़ता है और नेत्र भी शुद्ध होता है.