Shivling भगवान शिव और देवी शक्ति (पार्वती) का आदि-आनादी एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतिक भी अर्थात इस संसार में न केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है अर्थात दोनों सामान है।
मंदिरों में आमतौर पर shivling की जलहरी उत्तर की ओर रखी जाती है। कुछ विशेष मंदिर में यह दिशा दक्षिण हो जाती है। लेकिन एक मंदिर ऐसा भी है। जहां शिवलिंग को भक्त अपनी सहूलियत से घुमाकर किसी भी दिशा में उनका मुख ले जा सकते हैं।
यह अनूठा shivling ग्वालियर के श्योपुर के छार बाग मोहल्ला स्थित अष्टफलक की छत्री में है। शिवलिंग को इस प्रकार बनाया गया है कि वह अपनी धुरी पर चारों ओर घूम सकता है। श्रद्धालु अपनी इच्छा के मुताबिक शिवलिंग की जलहरी को दिशा देकर भोलेनाथ को रिझाते हैं।
घुमने वाले इस शिवलिंग कि प्राण-प्रतिष्ठा श्योपुर के गौड़ वंशीय राजा पुरुषोत्तम दास ने सन् 1722 में करवाई थी। इसका उल्लेख इस मंदिर में लगे शिलापट्ट पर भी अंकित है।
इस शिवालय को अब गोविंदेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। इससे पूर्व यह शिवलिंग सोलापूर महाराष्ट्र में बाम्बेश्वर महादेव के रूप में स्थापित था।
गौड़ राजा शिवभक्त थे। उन्होंने शिवनगरी के रूप में शिवपुर (अब श्योपुर) नगर बसाया। शिवलिंग लाल पत्थर का बना हुआ है। यह दो भाग में विभाजित है। एक पिंडी और दूसरा जलहरी।
यह shivling नीचे एक आकार में बनी पत्थर की धुरी पर टिका हुआ है। अपनी धुरी पर यह शिवलिंग चारों तरफ घूम जाता है। मंदिर में आने वाले भक्त शिवलिंग को अपनी सुविधानुसार घुमाकर पूजा कर लेते हैं।