बिहार में सूखे का बड़ा असर सूबे की नदियों पर भी पड़ा है। एक ओर छोटी नदियां सूखने लगी हैं, वहीं बड़ी नदियों से पानी तेजी से गायब हो रहा है। सावन आए दो सप्ताह हो चुके हैं, लेकिन नदियों में कहीं उफान नहीं है। ऐसा पहली बार हो रहा है जब कोसी को छोड़कर कोई नदी खतरे के निशान के ऊपर नहीं। वह भी केवल सुपौल में लाल निशान के ऊपर बह रही है। कभी पानी से लबालब रहने वाली इन नदियों का हाल बुरा है।
15 छोटी नदियां बटाने, चंदन, चीरगेरुआ, खलखलिया, जमुने, मोरहर, कारी कोसी, भूतही, चिरैया, धोबा, मोहाने, नोनाई, पंचाने, दरधा, कररुआ सूखी पड़ी हैं। इन नदियों में अधिसंख्य स्थलों पर पानी ही नहीं है। इनमें अधिसंख्य दक्षिण बिहार की नदियां है। इनके अलावा 8 नदियां ऐसी हैं जहां पानी मापने के स्तर से भी नीचे जा चुका है। यदि शीघ्र बारिश नहीं हुई तो ये भी पूरी तरह सूख जाएंगी। इन नदियों में बलान, जीवछ, थोमाने, नूना, वाया, गंडकी मराह और दाहा शामिल हैं। सबसे खतरनाक स्थिति तो यह है कि 38 छोटी नदियों का जल ठहर गया है। इनमें पानी तो है, लेकिन उसमें कोई बहाव नहीं है।
उधर, रुठे मानसून के कारण बड़ी नदियां भी संकट में आ गयी हैं। इनका पानी भी धीरे-धीरे गायब हो रहा है। जहां इस समय इन नदियों का जलस्तर खतरे के निशान के पार होता था, वहीं आज इनका जलस्तर काफी नीचे चला गया है। गत वर्ष इस समय 14 नदियां खतरे के निशान के ऊपर थी। लेकिन, आज एकमात्र कोसी नदी ही खतरे के निशान से ऊपर है और वह भी सिर्फ एक स्थान पर है।
कई नदियां हैं स्थिर
पिछले साल बागमती, बूढ़ी गंडक, कमला-बलान, अधवारा, खिरोई, लखनदेई करेह, बाया, तीसभंवरा, थोमाने, परमान, बलान, घोघा व मोहाने नदियां लाल निशान के ऊपर बह रही थी। कई नदियां एक से चार मीटर तक लाल निशान से ऊपर थी। यही नहीं गत वर्ष एक दर्जन से अधिक नदियां अधिसंख्य स्थानों पर लगातार ऊपर बढ़ रही थी। लेकिन इस साल ये अधिकतर स्थानों पर या तो स्थिर हैं या फिर नीचे उतर रही हैं।
पानी के लिए खुद तरस रही हैं राज्य की नहरें
सूखे का सबसे ज्यादा असर सूबे की नहरों पर पड़ा है। अधिसंख्य नहरों में पानी ही नहीं है। कई नहरों में तो धूल उड़ रही है। तीनों बड़ी नहर प्रणालियां कोसी, गंडक औक सोन से किसानों को पानी ही नहीं मिल पा रहा है। हाल यह है कि सूबे की 16 बड़ी सिंचाई परियोजनाओं में से 7 सूखी पड़ी हैं। इनमें एक बूंद पानी नहीं है। ऐसे में जहां आसमान से किसानों पर आफत बरस रही है, वहीं नीचे भी उन्हें कोई राहत नहीं मिल रही।
लेकिन पूर्वी मुख्य नहर में 6000 क्यूसेक जबकि पश्चिमी कोसी मुख्य नहर को केवल 3200 क्यूसेक पानी ही दिया जा रहा है। इसी तरह गंडक नहर प्रणाली के वाल्मीकिनगर बराज पर 99 हजार क्यूसेक पानी उपलब्ध है। इसमें पूर्वी मुख्य नहर को 7400 क्यूसेक और पश्चिमी मुख्य नहर को 14 हजार क्यूसेक पानी दिया जा रहा है। जबकि, सोन नहर प्रणाली के इन्द्रपुरी बराज पर केवल 15 हजार क्यूसेक पानी है। इनमें से पूर्वी नहर प्रणाली को 4600 क्यूसेक और पश्चिमी नहर प्रणाली को 10 हजार क्यूसेक पानी दिया जा रहा था। इनसे किसानों की जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं।
इसी तरह उत्तर कोयल नहर प्रणाली के मोहम्मदपुर बराज पर 2000 क्यूसेक पानी है, इसमें से बिहार को मात्र 800 क्यूसेक ही मिल रहा है। शेष झारखंड चला जा रहा है। उधर, प्रदेश की 16 सिंचाई परियोजनाओं का हाल बुरा है। इनकी क्षमता 9090 क्यूसेक पानी की है, लेकिन यहां केवल 920 क्यूसेक पानी ही उपलब्ध है। इसके कारण दक्षिण बिहार के 8 जिलों में स्थिति बेहद गंभीर हो गयी है।
इन जिलों में कैमूर-भभुआ, नालंदा, नवादा, शेखपुरा, जहानाबाद, गया, औरंगाबाद शामिल हैं। इन 16 परियोजनाओं में क्षमता का 10 फीसदी पानी ही है। पूरी परियोजना में 582 किलोमीटर लंबी नहर प्रणाली है, लेकिन इसमें से 472 किलोमीटर नहर में पानी ही नहीं है। ऐसे में इन इलाकों में कैसे सिंचाई होगी, यह बड़ा सवाल है।