राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सर संघसंचालक मोहन भागवत आज बिहार के सारण जिला स्थित मलखाचक गांव पहुंचे हुए हैं। वहां वे संघ के कार्यक्रमों में शामिल हो रहे हैं। इसके साथ ही सवाल यह है कि भागवत के कार्यक्रम के लिए आरएसएस ने मलखानचक गांव को क्यों चुना? इस गांव को आज बिहार में भी लोग कम जानते हैं, लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में अंग्रेज इस बात पर संशय में थे कि यह गांव हिंसात्मक आंदोलन का गढ़ है या अहिंसात्मक आंदोलन का। यहां महात्मा गांधी और पंडित नेहरू के साथ-साथ क्रांतिकारी भगत सिंह व चंद्रशेखर आजाद आदि भी सक्रिय रहे थे।
मोहन भागवत के आज के कार्यक्रम, एक नजर:
मोहन भागवत सुबह सुबह में मलखाचक गांव में सबसे पहले वे स्वतंत्रता सेनानी बासुदेव सिंह के आवास पर उनके बलिदानी पुत्र श्रीनारायण सिंह की प्रतिमा का अनावरण किया। फिर, 8.45 बजे मलखाचक के कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे। वहां वे 350 स्वतंत्रता सेनानियों व उनके स्वजनों को सम्मानित करेंगे। ये स्वतंत्रता सेनानी आजतक गुमनाम या अंग्रेजों की फाइलों में लुटेरे के रूप में बदनाम थे। भागवत वरिष्ठ पत्रकार रवींद्र कुमार की पुस्तक ‘स्वतंत्रता आंदोलन की बिखरी कड़ियां’ का लोकार्पण भी करेंगे।
भागवत के कार्यक्रम को लेकर लोगों में उत्साह है तो प्रशासन ने सुरक्षा के खासा इंतजाम किए हैं। पूरे गांव में उत्सवी माहौल है। कार्यक्रम का गवाह बनने के लिए बिहार, झारखंड, उड़ीसा समेत दूसरे प्रदेशों में रहने वाले मलखाचक के लोग भी गांव पहुंचे हैं।
बड़ा सवाल: इस छोटे गांव में यह कार्यक्रम क्यों?
भागवत शुक्रवार से बिहार में हैं। शनिवार को वे बक्सर में थे। वहां उन्होंने प्रख्यात संत स्वर्गीय मामाजी के पुण्य स्मरण में आयोजित कार्यक्रम में शिरकत की। सोमवार को वे दरभंगा में आरएसएस के स्वयंसेवकों के एकत्रीकरण को संबोधित करेंगे। इसके पहले रविवार का ‘मलखाचक’ में हो रहा कार्यक्रम चर्चा में है। आम लोगों में उत्सुकता है कि राष्ट्रीय स्तर के बड़े नेता का इस छोटे से गांव में कार्यक्रम क्यों?
राजस्थान से आए मलखा कुंवर ने बसाया था गांव:
बिहार के इस गांव को राजस्थान से पैदल चलते राजस्थान से आए मलखा कुंवर ने बसाया था। वे आरा होकर दानापुर, फिर वहां से गंगा नदी को पार कर कसमर आए थे। मलखा कुंवर ने कसमर के नवाब को हराकर अपने आठ भाइयों को यहां एक-एक गांव में बसाया। वे खुद जिस जगह बसे, उसका नाम मलखाचक पड़ा।
गुलामी के दौर में अंग्रेज रखते थे बेहद खास नजर:
सारण जिला के मलखानचक गांव को आज बिहार में भी कम लोग ही जानते हैं, लेकिन गुलामी के दौर में अंग्रेज इस जगह पर बेदह खास नजर रखते थे। वे समझ नहीं पाते थे कि यह गांव गांधी के अहिंसात्मक आंदोलन का गढ़ है या भगत सिंह के हिंसात्मक आंदोलन का। यहां महात्मा गांधी और पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ-साथ भगत सिंह व उनके क्रांतिकारी साथी भी आते रहते थे।
यहां आए थे गांधी, भगत, चंद्रशेखर व बटुकेश्वर:
मलखाचक के लोगों के अनुसार यहां साल 1924, 1925 और 1936 में महात्मा गांधी आए थे। महात्मा गांधी ने ‘यंग इंडिया’ में इस गांव की प्रशंसा करते हुए लिखा था कि यहां के लोग खादी के जरिए सामाजिक एवं आर्थिक विकास के साथ देश के जन-जागरण की मुहिम में लगे हैं। मलखानचक गांव में भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद एवं बटुकेश्वर दत्त जैसे क्रांतिकारियों ने निशानेबाजी का अभ्यास भी किया था। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान यहां के श्रीनारायण सिंह और हरिनंदन प्रसाद शहीद हो गए थे। मोहन भागवत आज इस गांव में शहीद श्रीनारायण सिंह की प्रतिमा का अनावरण करेंगे।
और भी कई हैं मलखानचक की देशभक्ति गाथाएं:
- साल 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के एक साल पूर्व 1856 में वीर कुंवर सिंह के विश्वासपात्र रहे राम गोविंद सिंह उर्फ चचवा, जिन्होंने सोनपुर मेले में स्वतंत्रता आंदोलन में खुद को झोंक देने की शपथ ली थी, मलखाचक के ही थे।
- असहयोग आंदोलन के दौरान अंग्रेजी सरकार के दारोगा पद से इस्तीफा देकर आंदोलनकारियों का साथ देने वाले पहले सरकारी कर्मी रामानंद सिंह भी मलखाचक के थे। अंग्रेजों ने उन्हें बड़ी यातनाएं दीं। इससे उनकी मौत हो गई। मौत के समय उनके शरीर पर 180 घावों के निशान थे।
- मलखाचक के रामदेनी सिंह को हाजीपुर स्टेशन पर क्रांतिकारियों के लिए डकैती का दोषी पाया गया था। वे बिहारी मूल के पहले क्रांतिकारी थे, जिन्हें फांसी दी गई थी। इससे पहले बंगाली मूल के बिहारी खुदीराम बोस को फांसी दी गई थी।
- भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को गद्दार फणींद्र घोष की गवाही के कारण फांसी की सजा हुई थी। इस कारण क्रांतिकारी बैकुंठ शुक्ल और चंद्रमा सिंह ने फणींद्र घोष की हत्या कर दी थी। इस घटना के बाद बैकुंठ शुक्ल मलखाचक गांव में ही भूमिगत रहे थे।
- अंग्रेजी हुकूमत के दौर में एक जालिम सीआईडी सब-इंस्पेक्टर वेदानंद झा था। उसकी मधुबनी में हत्या की योजना मलखाचक में ही सूरज नारायण सिंह ने बनाई थी।
- इस गांव की नारी शक्ति भी अंग्रेजों के खिलाफ बेखौफ खड़ी रही थी। यहां की 11 साल की सरस्वती देवी और 14 साल की शारदा देवी ने दिघवारा थाने पर तिरंगा फहराया था, जिसके लिए उन्हें जेल की लंबी सजा मिली थी