रक्षाबंधन के बाद, मिथिला में भाई-बहन का यह पर्व, सामा चकेवा, बिहार के मिथिलांचल में धूमधाम से मनाया जाता है, और इसे मिथिलांचल का रक्षाबंधन भी कहा जाता है. यह पर्व छठ के समापन होते ही आरंभ होता है और इसे भाई-बहन के प्यार के रूप में मनाया जाता है. इस पर्व में मूर्तिकारों द्वारा मूर्तियों को अंतिम रूप दिया जाता है. इसके अलावा, सातभैया, चुगला, और वृंदावन नामक कई प्रकार की छोटी-छोटी मूर्तियां बनती हैं.
पर्यावरण से भी है संबंध
सामा चकेवा पर्व का संबंध पर्यावरण से भी माना जाता है. इस पारंपरिक लोकगीत से जुड़े उत्सव में, सामा चकेवा मिथिला संस्कृति की वह खासियत है जो सभी समुदायों के बीच व्याप्त जड़ बाधाओं को तोड़ती है. यह उत्सव आठ दिनों तक चलता है और नौवे दिन बहनें अपने भाइयों को धान की नई फसल का चूड़ा और दही खिलाकर सामा चकेवा की मूर्ति को तालाब में विसर्जित करती हैं. इस दौरान बैंड बाजे के साथ पूरी धूमधाम से विसर्जन का उत्सव मनाया जाता है.
मूर्तियों को दिया जा रहा है अंतिम स्वरूप
इन मूर्तियों के दाम के बारे में बात करते हुए, पूरे पर्व का सेट पिछले साल 100 से 150 रुपए तक बिक रहा था, लेकिन इस बार मूर्तिकारों के मुताबिक, इस बार 200 रूपए में सेट बिकेगा. मूर्तिकार महिला सोनी देवी ने बताया है कि इसमें सामा चकेवा के साथ कई तरह के मूर्तियां बनाई जाती हैं. इस पर्व को भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक माना जाता है, और गांव की लड़कियां इसे धूमधाम से मनाती हैं, गाकर लोकगीत गाती हैं.