बेटियाँ क्यो बनाती है गणित से दूरी – मैथेमेटिक्स गुरू आर के श्रीवास्तव

एक बिहारी सब पर भारी

देश मे मैथेमेटिक्स गुरू के नाम से मशहूर बिहार के चर्चित मैथेमेटिक्स गुरू आर के श्रीवास्तव ने एक स्टोरी के रूप मे देश- विदेश की महिलाओं तक यह संदेश पहुँचाने का प्रयास किया की आप गणित से न डरे।तथा अभिभावक भी अपने बेटियो को गणित के प्रति रूची को न छीने। आज श्रीवास्तव ने फ्रांस की रहने वाली उस बेटी सोफी की कहानी आप सबसे शेयर कर रहे है जो गणित पढ़ने की दिवानी थी।परंतु उसके पैरेन्टस सोफी को हमेशा गणित से दूरी बनाने का निर्देश देते।उसके बाद भी सोफी अपने घर के लोगो से छुप छुप कर गणित के सवाल को हल करती।आज वह पूरे विश्व मे पहली महिला गणितज्ञ के रूप मे जानी जाती है।

प्रेम और दुःख का गहरा नाता है. जहाँ एक आ जाय दूसरा आ ही जाता है. और इस प्रेम में भी दुःख आया… महिला होने का अभिशाप भी. आप क्या सोच रहे हैं की जरूर भारत की कहानी होगी ! लेकिन ऐसा नहीं है… ये बात है फ्रांस की. सोफी जर्मैन फ्रांस की एक महिला गणितज्ञ थी. पर दुर्भाग्य से उनका जन्म तब हुआ था (सत्रहवी शताब्दी) जब महिलाओं को यूरोप में समान अधिकार नहीं थे. बाकी सब तो ठीक लेकिन गणित पढ़ना औरतों के लिए खासकर बुरा माना जाता था. इसे पुरुषों का काम समझा जाता था. शायद यही कारण है की महिला गणितज्ञों की इतनी कमी रही है इतिहास में.

सोफी का जन्म एक अच्छे घराने में हुआ था और बचपन में वो अपने पिता के पुस्तकालय में बैठ कर पढा करती. इसी दौरान उन्हें एक किस्सा पढने को मिला. कहते हैं की आर्कीमिडिज (Archimedes) को एक सिपाही ने उस समय मार दिया जब वो ज्यामिति की कुछ संरचनाओं में लीन थे और उन्होंने सिपाही के सवालों का उत्तर देने की जरुरत नहीं समझी. शहर पर हमला हुआ था और वो गणित में लीन थे. इस किस्से से सोफी सोच में पड़ गई की जब कोई इस विषय में इस तरह तल्लीन हो सकता है तो जरूर इसमें कोई बात होगी. और उन्होंने गणित पढ़ना चालु किया. पर समस्या तब आई जब परिवार वालों को पता चला, परिवार वालों की पूरी कोशिश रही की ये गणित न पढ़े. तब के जमाने में यूरोप में ये काम लड़कियों के लिए बिल्कुल उपयुक्त नहीं समझा जाता था. तब लड़कियों को विश्वविद्यालयों में भी प्रवेश नहीं दिया जाता था. ख़ुद से पढ़ के भी क्या करती?

उनका गणित से प्रेम का ये आलम था की सोफी छुप कर घर के ऐसी जगहों पर गणित पढ़ा करती जहाँ कोई नहीं जाता. मोमबत्ती जला कर… फ्रांस में पड़ने वाली कड़ाके की ठंढ में भी वो जब घर के लोग सो जाते तो गणित पढ़ा करती. अपने प्यार के लिए तकलीफ सहती रही. घर वालों ने बाद में हार मान ली और परेशान करना छोड़ दिया. पर ये प्यार उन्हें इतनी आसानी से नहीं मिलने वाला गणित ख़ुद से पढ़ती तो ये कुछ पता नहीं होता की जो कर रही हैं सही है या ग़लत. ये भी नहीं पता होता था की जिन चीज़ों पर काम कर रही है कहीं वो पहले ही तो नहीं खोज लिए गए! ठीक उसी तरह जैसे रामानुजन, हार्डी से मिलने के पहले किया करते थे. कितना ही गणित वो ख़ुद लिख गए जिसकी खोज उस समय तक की जा चुकी थी. (रामानुजन की कहानी की तो श्रृंखला बन ही जायेगी, अभी उन पर एक और किताब पढ़ रहा हूँ. वो भी ख़त्म हो जाय तो लिखता हूँ). बिना औपचारिक शिक्षा के उन्हें कुछ पता ही नहीं था.

पर जहाँ चाह वहाँ राह ! उन्होंने एक नया तरीका निकाला… सेक्सपियर के ट्वेलव्थ नाईट की तरह उन्होंने एक ऐसे लड़के का छद्म नाम ले लिया जो पढ़ाई छोड़ चुका था, और वो उसके नाम से प्रश्न पत्रों का हल जमा कर देती. महान गणितज्ञ लैग्रंजे (Lagrange) ने जब उत्तरों को देखा तो उन्होंने सोफी को मिलने बुला भेजा और सोफी को अपना राज खोलना पडा. लैग्रंजे ने सोफी की तारीफ तो की पर फिर भी नियम के हिसाब से वो विश्वविद्यालय में प्रवेश नहीं ले सकती थी. इसी बीच सोफी एक और महान गणितज्ञ गॉस (Gauss) को अपने काम भेजती और गॉस पत्रों में जवाब दिया करते. यहाँ भी वो अपने छद्म नाम का ही इस्तेमाल करती. इस तरह कुछ दिनों तक चला पर ये बात भी ज्यादा दिनों तक नहीं चली. नेपोलियन ने गॉस के शहर प्रसिया (Prussia) पर हमला किया तो सोफी को बचपन वाली कहानी याद आ गई और उन्हें लगा कि कहीं आर्कीमिडिज वाली घटना गॉस के साथ भी न हो जाय. इसलिए उन्होंने अपनी एक सहेली को गॉस का ख़ास ध्यान रखने को कहा, उस सहेली ने गॉस को सब कुछ बता दिया. गॉस को बहुत आश्चर्य हुआ… की एक महिला भी गणित पर इतना अच्छा काम कर सकती है ! और उन्होंने सोफी को जो पत्र लिखा उसमें उनकी खूब प्रशंसा की. पर इस घटना के चंद दिनों बाद ही गॉस गोटिन्गेन विश्विद्यालय में खगोल शास्त्र के प्रोफेसर बन गए और गणित पर काम करना कम कर दिया और इसके साथ ही पत्र व्यवहार भी बंद हो गया.

पर समय के साथ सोफी का गणित प्रेम और संघर्ष जारी रहा… वो फ्रेंच गणित अकादमी में अपने काम को भेजती तो… काम उच्च कोटि का होते हुए भी उसमें कई छोटी-छोटी गलतियाँ होती. ऐसा अक्सर गणित में होता है पर अगर साथ में काम करने वाले होते हैं तो चर्चा और सुझाव से ये गलतियाँ हटाई जाती हैं. पर उन्हें मदद करने वाला कोई न था. फिर भी अंततः एक ऐसा समय आया जब वो अकादमी की बैठक में जाने वाली पहली ऐसी महिला बनीं जो किसी गणितज्ञ की पत्नी नहीं थी. इन सबके साथ गॉस ने उन्हें मानद डिग्री देने की सिफारिस भी की… उन्हें ये दी जाने वाली थी पर उसके पहले ही वो दुनिया छोड़ चली.

आज वो पहली महिला गणितज्ञ के रूप में जानी जाती हैं जिसने अच्छे और उपयोगी प्रमेयों की खोज की. सोफी लिखित कुछ दस्तावेजों से ये भी बात सामने आई की फ़र्मैट के प्रमेय पर उनकी सोच सही दिशा में थी. जहाँ उस समय के सारे गणितज्ञ किसी एक ख़ास अंक के लिए प्रमेय को साबित करने की कोशिश करते वहीँ सोफी ने एक विस्तृत सोच से शुरुआत की और कई सारे सिद्धांतों की मदद से पूरा प्रमेय एक साथ हल करने की कोशिश की. पर दुर्भाग्य न औपचारिक शिक्षा मिल पायी ना ही किसी गणितज्ञ का सहयोग… इतिहास के पन्नों में ऐसी कितनी ही प्रतिभाएं दफ़न हो गयीं… कारण बस यही था की वो महिला थी. नहीं तो आज उनका नाम कहीं और होता…. और पहली महिला गणितज्ञ होने के खिताब के साथ-साथ मुख्य धारा के महान गणितज्ञों में भी उनकी गिनती होती।

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