जितने वाले छोड़ते नही छोड़ने वाले जीतते नही – मैथमेटिक्स गुरु

एक बिहारी सब पर भारी

गुरु पूर्णिमा की आप सभी को शुभकामनाये। मेरा मानना है कि जीवन में ‘समय’ सबसे बड़ा गुरु होता है। मैंने अपने जीवन के सबसे कठीन समय से ही सबसे ज्यादा कुछ सीखा है। जब विपरीत परिस्थितियों में ख़ुद को अकेला पाया तो जीवन को करीब से जाना और सीखा। मैं आज अपने जीवन के वैसे तमान कठीन परिस्थितियों को गुरु के रूप में मान कर उनका शुक्रिया करता हूँ क्योंकि उन्होंने मुझे ज्यादा मज़बूत और निश्चयवान बनाया है।

पाॅच वर्ष के उम्र मे ही पिता को खोने का गम अभी दिल और मन दोनों से मिटा भी नही था की पिता तुल्य इकलौते बड़े भाई भी इस दुनिया को छोड़ चले गये। पापा का चेहरा तो हमे याद भी नही बस कभी रात को सोते वक्त सोचता हूँ तो धुॅधला धुधला सा दिखाई देता है।मेरे बड़े भैया ने पापा की कमियाॅ कभी हमे महसूस होने नही दिया। वे अपने क्षमता से भी बढ़कर हर वह जरूरी आवश्यकता की हमें बस्तुए , काॅपी – किताबे, खिलौने आदि उपलब्ध कराते जो हमारे जरूरत और माॅगे रहता। पापा के गुजरने के बाद भैया का उम्र खेलने कूदने का था। परंतु दुःख और जिम्मेदारी कब किसके पाले मे आ जाये ये सब समय का चक्र के गर्त मे छुपा है।पिता सामान बड़े भैया ने पूरे संयुक्त परिवार को अपने कष्ट करते हुए वह सारी सुविधाएँ दिये जो एक ग्रामीण परिवेश की जरूरत होती है। खास कर घर मे सबसे अधिक हमे प्यार करते थे। मेरे लिए उनका बहुत बड़ा सपना था की पढ़ा लिखा कर एक काबिल इंसान बनाने का।भैया का मेरा शौक था की मै सरकारी नौकरी करूँ लेकिन इसके विपरीत मेरा सोच कभी भी सरकारी नौकरी करने का नही रहा।

जिसके चलते घर मे काफी तनाव बना रहता था। दीदी जीजाजी को बुलाकर कहते की वे मेरा बात नही मान रहा कोई भी सरकारी फार्म नही भर रहा।जीजाजी दीदी हमे समझाते परन्तु मैं अपने सपने के साथ अडिग रहता की मुझे कोई सरकारी नौकरी नही करना।मुझे गरीब बच्चो के शिक्षा मे एक शिक्षक के रूप मे मदद करना है जिसका लाभ अंतिम पायदान के बच्चो को भी मिले। जब तक पिता तुल्य मेरे भैया इस भूलोक पर जीवित रहे मै कितना भी मेहनत करता परन्तु मेहनत के अनुरूप सफलता नही मिलता।मै भैया से हमेशा बोलता था की आप सरकारी नौकरी की चिंता न करे एक दिन पूरा बिहार राज्य सहित पूरा देश आपके अनुज का नाम जानेगा।

परन्तु समय के चक्र के सामने किसी का नही चलता । आज भी वह दिन हमे याद है जब मेरे पढाये बच्चे आइआइटी मे सफल होते तो मैं स्थानीय मीडिया के पास जाकर अपने रिजल्ट को बताता था।परंतु स्थानीय कुछ पत्रकार वंधु मेरा मजाक उड़ाते और हमसे पूछते क्या यह बच्चा आपके पास पढ़ा था इसके पिताजी का फोन नम्बर दिजीये बच्चे का मार्कसिट दिजीये , बच्चे से बात कराइये इत्यादि सवाल हमसे पूछे जाते।उनके सारे प्रश्नों का हल उनके अनुसार मैं देता। पैरेन्टस को उनके पास लेकर जाता , बच्चे भी अपना स्टेटमेन्ट देते।सारे उतर के बाद भी अगले दिन हमे निराशा मिलता। ऐसा कई वर्षों तक चलता रहा।क्योकि ये सब मै अपने भैया को दिखाना चाहता था की मैं शिक्षा मे आर्थिक रूप से गरीबों की सेवा करके उन परिवार और लोगो के दिलों मे स्थान पा रहा हूँ। वैसे परिवार को काफी खुशी मिलती है जिसके पूरे परिवार मे दूर दूर तक कोई इंजीनियर न हो परन्तु कोई पहला बच्चा गरीबी को काफी पीछे छोड़ इंजीनियर बना।लेकिन मेरे सारी कोशिशो के बाद उन सफल बच्चे के परिवार का तो हमें आशीर्वाद प्राप्त होता लेकिन कोई दूर दराज तक इस संदेश को नही पहुँचा पाता।क्योकि आज के आधुनिक युग मे अखबारो या अन्य मीडिया के माध्यम से आप अपने कार्यो का संदेश दूर तक पहुँचा सकते है।

इस संदेश के तहत अधिक बच्चों को शिक्षा का लाभ मिल सकता था यही मेरा सोच था।परंतु स्थानीय मीडिया हमें खूब दौड़ाती परन्तु परिणाम के रूप मे निराशा मिलती।समय का चक्र ऐसे ही चलता रहा एक दिन पिता तुल्य भैया को तबियत खराब होने के चलते बिक्रमगंज से आरा के रास्ते पटना ले जाने के क्रम मे पीरो मे ही अपने प्राण त्याग दिये।वह दिन मै कभी भूल नही सकता । उस दिन लगा की मेरे सारे सपने , मेरा दुनिया सब खत्म हो गया। अब मैं क्या करू। ऊपर से तीन भतीजीयो की शादी , भतीजे को पढ़ा लिखाकर काबिल इंसान बनाना ये सब मेरे मन और दिमाग मे घूमने लगे। रात को सोते वक्त आॅख आसूओ से भर जाते परन्तु मैं किसके पास जाकर रोता क्योंकि भतीजा भतीजी से छूपकर अकेले मे रो लेता ताकि वे टूटे नही उन्हे दिलासा दिलाता की बेटा मैं हूँ तुमलोगो को कोई तकलीफ मैं अपने जीवन मे नही होने दूंगा।काफी दिनों तक घर मे काफी उदासी का माहौल था।

परन्तु समय एक ऐसा चक्र है की हर अंधेरे के बाद उजाला जरूर होता है। और मेरे दुसरे जीवन मे पिता के रूप मे एक ऐसे इंसान का आशीर्वाद प्राप्त हुआ जिससे मै टूटने के बाद फिर से मजबूत होने लगा।टूटे सपने फिर से देखने लगा।मेरा परिवार फिर से संभलना चालू हो गया।फिर से पहले की तरह या उससे कई गुना अधिक मेहनत करने लगा। पिता तुल्य प्रख्यात शिक्षाविद आदरणीय राज्यसभा सांसद आर के सिन्हा बाबुजी का आशीर्वाद पाते ही मेरे नाम की चर्चा पूरे बिहार सहित अन्य राज्यों मे भी प्रारंभ हो गया। मेरे द्वारा शिक्षा मे किये जा रहे कार्यों को सारे मीडिया विगत वर्षों मे प्रमुखता से लेने लगे। राज्यस्तरीय तथा राष्ट्रीय सभी मीडिया में मेरे द्वारा किये गये कार्यों को स्थान मिलने लगा।आज मै कहना चाहूॅगा की पापा , भैया , बाबूजी सभी का आशीर्वाद ही मुझे काफी शक्ति देता है की परिस्थितियाॅ कैसा भी हौसले नही हारना चाहिए।क्योकि जीतने वाले छोड़ते नही छोड़ने वाले जीतते नही।

मैथेमेटिक्स गुरू आर के श्रीवास्तव आज के स्टूडेंट्स को संदेश देना चाहता हूँ की पिता की कद्र करो।अपनी व्यस्तता के बाद भी समय निकालकर उनसे प्यार भरी बाते करो । पापा वह अनमोल हीरा होते है जिसका शब्दो मे व्याख्यान नही किया जा सकता है। जब तक वह हमारे सामने है तूम्हे इतना अधिक एहसास नही होता होगा की वे हमारे लिए कितने महत्वपूर्ण है परन्तु उनके खोने के बाद पता चलता है की आखिर हमारे जीवन मे पिता का महत्व कितना अनमोल है।इसलिए इस भाग दौड़ की दुनिया से समय निकालकर अपना अधिक से अधिक समय अपने पैरेन्टस को दे।आपसे वे कुछ माॅगेगे नही परन्तु आपका प्यार भरा दो शब्द उनके उम्र को कई गुना बढ़ा देगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *