भारत के सभी राज्यों का रहन-सहन और खान-पान एक दूसरे से काफी अलग है, हर राज्य के लोग अलग तरीके का जीवन यापन करते हैं और अलग जीवन शैली के साथ रहते हैं. इन राज्यों का खान-पान भी एक दूसरे से काफी अलग है. लेकिन भारत में मांसाहार का लगभग सभी राज्यों का प्रचलन है. लेकिन हम आज आपको एक ऐसे राज्य की कहानी बताने जा रहे हैं जहां के लोग मांसाहार तो छोड़िए लहसुन प्याज तक का इस्तेमाल नहीं करते हैं. यहां रहने वाले लोग सात्विक जीवन जीते हैं और ठीक उसी प्रकार से रहते हैं, जैसे पुराने जमाने में साधु संत और ऋषि-मुनि रहा करते थे. लोगों के इस प्रकार के जीवन शैली के पीछे का कारण क्या है और आखिर इस राज्य के लोग इस प्रकार से क्यों रहते हैं, यह कहानी काफी दिलचस्प भी है और लोगों की भावनाओं से जुड़ी भी है.

साल के इन खास दिनों में जीवन शैली बदल लेते हैं लोग
दरअसल, हम बात कर रहे हैं बिहार राज्य की जहां के रहने वाले लोग साल के कुछ खास दिनों में अपनी जीवन शैली, अपना रहन-सहन और भोजन को भी पूरी तरह से बदल लेते हैं. यहां के लोग इन सात दिन में मांसाहार का सेवन नहीं करते. इतना ही नहीं घरों में बनने वाले भोजन में लहसुन-प्याज का इस्तेमाल भी पूरी तरह से वर्जित माना जाता है. घरों में शुद्ध और सात्विक खाना बनता है. जिसमें सेंधा नमक का इस्तेमाल किया जाता है. कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रथम तिथि से लेकर सप्तमी तिथि तक यह स्थिति रहती है और इस दौरान लोगों का जीवन काफी सात्विक और पौराणिक होता है. यहां के लोग पिछले कई सदियों से यही करते आ रहे हैं और इसके पीछे लोगों का धार्मिक तथा भावनात्मक जुड़ाव भी है. दरअसल, इस राज्य में कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी और सप्तमी तिथि को लोक आस्था का महापर्व छठ मनाया जाता है और इसीलिए यहां के लोग यह काम करते हैं.
बिहार में छठ पर्व को साल का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है और इसके काफी प्रधानता है. लोग इस पर्व के दौरान हर छोटे-बड़े नियमों का पूरी तरह से पालन करते हैं. यहां के लोग छठ पर्व को काफी श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाते हैं और इस पर्व को मनाने के दौरान काफी शुद्धता भी रखते हैं. और यही कारण है कि दीपावली के बाद से ही इस राज्य में लोग मांसाहार का सेवन बंद कर देते हैं और प्याज लहसुन का इस्तेमाल भी बंद कर देते हैं. यहां के लोगों का छठ पर्व के प्रति जुड़ाव इस बात से समझा जा सकता है कि देश सहित विदेशों में रहने वाले लोग भी भले ही वह साल में घर पहुंचे या ना पहुंचे छठ के दौरान वह अपने घर जरूर आते हैं.