मंगलवार, 30 जुलाई को सावन माह के शुक्ल पक्ष की की चतुर्दशी तिथि है। इस माह के हर मंगलवार को मंगला गौरी व्रत किया जाता है। ये व्रत विवाहित महिलाएं जीवन साथी और संतान के सुखद जीवन की कामना से करती हैं।

ये है व्रत से जुड़ी प्रचलति कथा
लोक कथा के अनुसार पुराने समय धर्मपाल नाम का एक सेठ था। उसके पास धन-संपत्ति की कोई कमी नहीं थी और पत्नी भी श्रेष्ठ थी, लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। इसलिए वह दुखी रहता था। लंबे इंतजार के बाद भगवान की कृपा से उसे एक पुत्र रत्न प्राप्त हुआ। उस पुत्र के संबंध में ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि ये अल्पायु है और सोलहवें वर्ष में सांप के डसने से इसकी मृत्यु होगी।

जब पुत्र थोड़ा बड़ा हुआ तो उसका विवाह ऐसी कन्या से हो गया, जिसकी मां मंगला गौरी व्रत करती थी। ये व्रत करने वाली महिला की पुत्री को आजीवन पति का सुख मिलता है और वह हमेशा सुखी रहती है। इस व्रत के शुभ प्रभाव से धर्मपाल के पुत्र को भी लंबी आयु मिली।
व्रत की सामान्य विधि

- मंगलवार को सुबह जल्दी उठें और व्रत करने का संकल्प लें। स्नान के बाद घर के मंदिर में भगवान के सामने कहें कि मैं पुत्र, पौत्र, सौभाग्य वृद्धि और श्री मंगला गौरी की कृपा प्राप्ति के लिए मंगला गौरी व्रत करने का संकल्प लेती हूं। इसके बाद मां मंगला गौरी यानी पार्वतीजी की मूर्ति स्थापित करें। मूर्ति को लाल कपड़े पर रखना चाहिए। इसके बाद आटे से बना दीपक घी भरकर जलाएं। पूजा, आरती करें।

- पूजा में ऊँ उमामहेश्वराय नम: मंत्र का जाप करें।
- पूजन में माता को हार-फूल, लड्डू, फल, पान, इलाइची, लौंग, सुपारी, सुहाग का सामान और मिठाई चढ़ाएं। मंगला गौरी की कथा सुनें। पूजा के बाद प्रसाद वितरित करें और जरूरतमंद लोगों को दान करें।
- ध्यान रखें, पांच साल तक मंगला गौरी पूजन करने के बाद पांचवें वर्ष में सावन के अंतिम मंगलवार को इस व्रत का उद्यापन करना चाहिए।
Sources:-Dainik Bhasakar