सासाराम शहर से दक्षिण में कैमूर की पहाड़ी की मनोरम वादियों में मां ताराचंडी का वास है। यह भारत के 52 शंक्ति पीठों से एक है।
माँ तारा चंडी पीठ भारत के 52 पीठों से सबसे पुराना पीठ माना जाता है। पुराण के अनुसार उनके पत्नी “सती ” अपने पिता के घर अपने स्वामी को अबमानना होने पर जब आत्मदाह किए , भगबान शिब क्रोध मे आकार सती के सब को उठाकर भयंकर तांडब नृत्य करने लगे। उसी मे बिश्व द्वंश होने का खतरा रहा। भगबान बिष्णु बिश्व को रक्षया करने हेतु अपने सुदर्शन चक्र भेज कर सती के सब को खंड खंड करा दिये।
वो सभी खंड भारत उपमहादेश की बिभिन्न प्रांत में गिरे। वो सभी प्रांत को ” शक्ति पीठ” माना जाता है और हिंदुओं के लिए सभी पीठ बहुत मतत्वपूर्ण रहे है। माँ तारा पीठ पर सती की “दाहिने आँख ” पड़े थे। यहाँ एक अति प्राचीन मंदिर , जिनहे ” माँ सती ” मंदिर कहा जाता था,उसे माँ तारा की आबास कहा जाता है।
कैमूर पहाड़ियों में अनन्य कई आकर्षण भी रहे है। यहाँ गुप्त महादेव मंदिर , पारबती मंदिर , पुराने गुंफाओं , मँझार कुंडओर धुआ कुंड नामक दो जलप्रपात है। येही दोनों जलप्रपात से बिजली उत्पादन भी संभब है।
तारा चंडी मंदिर का अबस्थिति सासाराम से दक्षिण दिग मे 5 किलोमीटर की दूरी पर है। यहाँ बहुत हिन्दू भक्तों का समागम होता है। धुआँ कुंड प्रपात भी यहाँ का एका बहुत बड़ा परज्यातक आकर्षण है।
कहा जाता है कि महर्षि विश्वामित्र ने इसे तारा नाम दिया था। दरअसल, यहीं पर परशुराम ने सहस्त्रबाहु को पराजित कर मां तारा की उपासना की थी। मां तारा इस शक्तिपीठ में बालिका के रूप में प्रकट हुई थीं और यहीं पर चंड का वध कर चंडी कहलाई थीं। यही स्थान बाद में सासाराम के नाम से जाना जाने लगा।
मां की सुंदर मूर्ति एक गुफा के अंदर विशाल काले पत्थर से लगी हुई है। मुख्य मूर्ति के बगल में बाल गणेश की एक प्रतिमा भी है। कहते हैं कि मां ताराचंडी के भक्तों पर जल्दी कृपा करती हैं। वे पूजा करने वालों पर शीघ्र प्रसन्न होती हैं। मां के दरबार में आने वाले श्रद्धालु नारियल फोड़ते हैं और माता को चुनरी चढ़ाते हैं।
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चैत और शरद नवरात्र के समय ताराचंडी में विशाल मेला लगता है। इस मेले की प्रशासनिक स्तर पर तैयारी की जाती है। रोहतास जिला और आसपास के क्षेत्रों में माता के प्रति लोगों में अगाध श्रद्धा है। कहा जाता है गौतम बुद्ध बोध गया से सारनाथ जाते समय यहां रूके थे। वहीं सिखों ने नौंवे गुरु तेगबहादुर जी भी यहां आकर रुके थे।
कभी ताराचंडी का मंदिर जंगलों के बीच हुआ करता था। पर अब जीटी रोड का नया बाइपास रोड मां के मंदिर के बिल्कुल बगल से गुजरता है। यहां पहाड़ों को काटकर सड़क बनाई गई है। ताराचंडी मंदिर का परिसर अब काफी खूबसूरत बन चुका है। श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए बेहतर इंतजाम किए गए हैं। मंदिर परिसर में कई दुकानें भी हैं।
अब मंदिर के पास तो विवाह स्थल भी बन गए हैं। आसपास के गांवों के लोग मंदिर के पास विवाह के आयोजन के लिए भी आते हैं।
मां ताराचंडी का मंदिर सुबह 4 बजे से संध्या के 9 बजे तक खुला रहता है। संध्या आरती शाम को 6.30 बजे होती है, जिसमें शामिल होने के लिए श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। मंदिर की व्यवस्था बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद देखता है।
कैसे पहुंचे- ताराचंडी मंदिर की दूरी सासाराम रेलवे स्टेशन से 6 किलोमीटर है। मंदिर तक पहुंचने के लिए तीन रास्ते हैं। बौलिया रोड होकर शहर के बीच से जा सकते हैं।
एसपी जैन कालेज वाली सड़क से या फिर शेरशाह के मकबरे के बगल से करपूरवा गांव होते हुए पहुंच सकते हैं। आपके पास अपना वाहन नहीं है तो सासाराम से डेहरी जाने वाली बस लें और उसमें मां ताराचंडी के बस स्टाप पर उतर जाएं।
मंदिर बहुत भव्य बना हुआ है , और अभी भी निर्माण कार्य चल रहा है । मंदिर में संगमरमर की शिलाओं पर दानदाताओं के नाम जगह जगह खुदे हुए है । तारा चंडी मंदिर प्रांगण में ही भैरव नाथ का नया मन्दिर बना है । एक नयी और रोचक बात दिखाई दी, कि मंदिर प्रांगण में ही एक मजार भी बनी हुए ।
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इसके बारे में जब पुजारी जी ने बताया कि पहले माँ ताराचंडी का मंदिर कम जगह में बना हुआ था । लेकिन जब मंदिर का विस्तार हुआ तो पास ही बनी ये मजार मंदिर परिसर के बीचोबीच आ गयी । लेकिन धार्मिक सद्भाव न बिगड़े इसलिए इसे कोई क्षति नही पहुचाई गयी ।
आज भी मुस्लिम धर्मं के लोग यहां उपासना करते है । देश में धार्मिक सद्भाव की अनूठी मिसाल देखने मिली ।