दुर्गा पूजा प्रारंभ है. पूरे शहर में कई जगहों पर मां की प्रतिमा को स्थापित की जा रही है. वहीं आपको बता दें कि कई मंदिरों में बलि प्रथा अभी भी चल रही है. लेकिन आपने भी घरों में देखा होगा सप्तमी व अष्टमी को निशा बलि दी जाती है. बहुत सी जगह पर सप्तमी की रात में ही निशा बलि होती है, तो बहुत जगह पर अष्टमी की रात में निशा बलि दी जाती है. जिसमें हम लोग नेनुआ(परोल) या कोढ़ा की बलि देते हैं. आइए जानते हैं इसका क्या महत्व है.
इसको लेकर जब पंडित गुलशन झा से बात की गई तो उन्होंने बताया कि मां को बलि अतिप्रिय है. उन्होंने जब महिषासुर का व उसके सैनिक का संघार किया था, तभी से यह बलि प्रथा चलती आ रही है. पहले कई जगहों पर आत्मबली दी जाती थी. लेकिन धीरे-धीरे यह प्रथा बंद हो गई. उसके बाद लोग पशु की बलि देने लगे. लेकिन घरों में उसके स्वरूप में लोग परोल या कोढ़ा की बलि देते हैं.
आटा की भी बलि है मान्य
पंडित जी कहते हैं कि अगर यह दोनों चीज बलि के दिन उपलब्ध नहीं हो पाती है तो आप आटा की बलि दे सकते हैं. शुद्ध आटा को सान कर उसको नेनुआ के तरह बनाया जाता है. उसकी बलि भी दी जाती है. मां को बलि अति प्रिय है. लोग अपनी मन्नतें मांग कर भी बलि देते हैं. शहर के कई ऐसे प्रसिद्ध मंदिर है जहां पर हजारों की संख्या में बलि पड़ती है.