मां काली के इस मंदिर में जलती चिताओं के बीच आराधना करने से मिलता है मनचाहा फल

आस्था जानकारी

मुजफ्फरपुर के सिकंदरपुर स्थित मुक्तिधाम में रोजाना लोगों का अंतिम संस्कार होता है. इस मुक्ति धाम की व्यवस्था पूरी तरह से आधुनिक मुक्ति धाम के तौर पर है. इस मुक्तिधाम में मां काली का एक मंदिर भी है, जो शहर में बेहद लोकप्रिय है. माता के भक्त शमशानघाट में मां काली का दर्शन करने आते हैं और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.

30 साल पहले इस स्थान पर जंगल था. बूढ़ी गंडक के किनारे होने के कारण बरसात के मौसम में चिता जलने के स्थान तक पानी भर जाता था. इस कारण कई बार घाट पर शव दाह नहीं हो पाता था. उस समय तक इस घाट में मां काली का मंदिर नहीं था.

1996 में पहली बार श्मशान घाट में साधना करने के लिए अघोरी बाबा श्रृष्टि शून्यम महाराज ने हवन कुंड स्थापित किया. इसके बाद मां काली की आराधना श्मशान घाट में शुरू की. 4 साल बाद श्मशानघाट के एक ऊंचे स्थान पर वर्ष 2000 में मां काली की प्रतिमा स्थापित की गई. इसके बाद मंदिर की नींव रखने वाले बाबा श्रृष्टि शून्यम ने नर मुण्डों में तंत्र साधना कर माता के चरण में स्थापित किया. सिकंदरपुर श्मशानघाट में इस मंदिर की स्थापना करने वाले श्रृष्टि शून्यम महाराज आज भी इस मंदिर में हैं.

चिताओं के बीच माता की आराधना से होती है सिद्धि

श्रृष्टि शून्यम महाराज ने बताया 30 साल पहले वह ऋषिकेश से मुजफ्फरपुर आए थे. इस दौरान बूढ़ी गंडक नदी के किनारे रात को माता को आराधना करते थे. इसी दौरान मन में विचार आया कि क्यों न श्मशानघाट में माता को स्थापित किया जाए. इसी विचार के साथ उन्होंने सबसे पहले सिकंदरपुर के इस श्मशान में मां काली के हवन कुंड की स्थापना की. बाद में मां काली का प्रतिमा स्थापित की.

वे बताते हैं कि यह स्थान बेहद पवित्र और मन को शांति देने वाला है. अघोरी बाबा आगे कहते हैं कि इस मंदिर में माता के दर्शन के लिए दूर-दूर से भक्त आते हैं. श्मशान में जलती चिताओं के बीच माता की आराधना सर्व मनोकामना को सिद्ध करने वाला है.

 

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