पटना: मलमास यानी अधिकमास यानी पुरुषोत्तम मास। जो इस बार 16 मई से लगने वाला है। जिस तो हम आपको बताएंगे कि, इन दिनों क्या नहीं करना चाहिए। साथ ही उन उपायों के बारे में बताएंगे कि, क्या करने से आपको लाभ मिलेगा। उससे पहले एक नजर इस पर की आखिर, मलमास होता क्या है। दरअसल, सनातनी हिंदू कैलेंडर को व्यवस्थित करने वाला काल ही अधिकमास या मलमास कहलाता है। महीने में सूर्य संक्रान्ति नहीं होता वो महीना अधिमास होता है। तीन वर्ष में एक बार इसका योग बनता है। कहा जाता है कि, सनातन धर्म में काल गणना की समानता के लिए अर्थात सूर्च व चंद्र गणना दोनों पद्धतियों की समान काल गणना को मलमास की व्यवस्था की गई है।
जानिए काशी के प्रसिद्ध ज्योतिष ने क्या कहा
काशी विद्वत परिषद के संगठन मंत्री और काशी विश्वनाथ कार्यपालक समिति के पूर्व सदस्य ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी के अनुसार, चंद्र गणना पद्धति में चंद्रमा की 16 कलाओं के आधार पर दो पक्षों का एक मास माना जाता है। प्रथम पक्ष को अमांत तथा दूसरे को पूर्णिमांत कहते हैं। कृष्ण पक्ष के प्रथम दिन से पूर्णिमा तक प्रत्येक मास में 29 दिन होते हैं। इस दृष्टि से इन गणना के अनुसार एक वर्ष 354 दिन का होता है।
वहीं पृथ्वी को सूर्य की परिक्रमा पूरी करने में 365 दिन, छह घंटे लगते हैं। इस प्रकार सूर्य व चंद्र गणना पद्धति में प्रत्येक वर्ष 11 दिन, तीन घड़ी, लगभग 50 तल का अंतर पड़ता है। यह अंतर तीन साल में बढ़ते-बढ़ते लगभग एक मास हो जाता है। इसी वजह से वर्ष होली, दीपावली, दशहरा, रक्षाबंधन आदि पर्व कुछ आगे-पीछे होते हैं। इस अंतर को पूरा करने के लिए ही भारतीय ज्योतिष गणित शास्त्र में तीन वर्ष में एक अधिक मास की व्यवस्था की गई है। ताकि काल गणना समान हो जाए। इस बार अधिक या मलमास 16 मई से शुरू होगा जो 13 जून तक रहेगा। ऐसे में सवत् 2075 में ज्येष्ठ मास की वृद्धि है। अर्थात संवत् 2075, 13 महीने का होगा।
भूलकर भी ना करें ये काम
ज्योतिष के अनुसार, मलमास में सभी शुभ कार्य शास्त्र में वर्जित बताए गए हैं। जिसमें फल की इच्छा से किए गए कोई भी काम नहीं करना चाहिए। जैसे- इसमें किसी भी प्रकार के व्रत, शादी, नवविवाहिता वधू का प्रवेश, पृथ्वी, हिरण्य व तुला के महादान, सोमयज्ञ और अष्टका श्राद्ध, गौका यथोचित दान, यज्ञ, ऋषि पूजन, वेदाध्ययन का आरंभ, मंत्र दीक्षा, यज्ञोपवीत संस्कार; विवाह मुण्डन, संन्यास, और अग्नि का स्थायी स्थापन आदि कार्य नहीं करने चाहिए।
इन कामों को करने से मिलेगा लाभ
मलमास में हर सनातनधर्मी को गंगा स्नान-दान और श्री हरि विष्णु की आराधना करनी चाहिए। अधिक मास के 33 देव हैं, जिसका अर्थ है कि 33 उद्देश्यों की प्राप्ति के निमित्त 33 मालपुआ को कांस्य पात्र में रख कर, घी व स्वार्णादि ब्राह्मण को दान करना चाहिए। इससे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस अवधि में विष्णु पूजा करने के लिए विष्णु सहस्त्रनाम, विष्णु मंत्र का जाप करना चाहिए।