भोजपुरी फिल्म का नाम सुनते ही समाज का परिष्कृत तबका तुच्छ नज़र से देखता है। द्वीअर्थी संवाद और अभद्र गानों की वजह से भोजपुरी फिल्में काफी बदनाम रहीं हैं। और फिल्मों की वजह से भोजपुरी भाषा पर भी कहीं न कहीं बुरा असर पड़ा है साथ ही भोजपुरी भाषी लोगों पर भी।
लेकिन कहते हैं न कीचड़ में ही कमल खिलता है। ऐसा ही करने की कोशिश में हैं बिहार के कुछ युवा। और उन्हीं युवाओं में हैं निर्देशक अमित मिश्र और कहानीकार अश्विनी रूद्र जिन्होंने भोजपुरी भाषा में एक लघु फिल्म- ललका गुलाब बनाई है। पारिवारिक रिश्तों को बड़ी ही खूबसूरती से दर्शाती 15 मिनट की ये फिल्म 10 साल का ‘वत्सल’ और उसके दादा को केंद्र में रखकर बुनी गई है। वत्सल का अपने दादा के साथ बहुत अच्छा रिश्ता है और उनकी आपस में बहुत बनती है. फिर अचानक उसके परिवार में एक ऐसी घटना घटती है जिसे वत्सल समझ नहीं पाता और आज तक उस सवाल का जवाब ढूंढ रहा है कि शायद कोई बता दे कि क्यों ?
“ललका गुलाब” मुंबई के अथर्व फिल्म फेस्टिवल 2017 में चयनित हुई, लॉस एंजेल्स के बिग शॉटस अंतराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल और कनाडा के इमर्जिंग लेंस कल्चरल फिल्म फेस्टिवल में सेमी फाइनलिस्ट रही।