PATNA : …
पटना यूनिवर्सिटी के शताब्दी समारोह में कई भव्य आयोजन होने वाले हैं। यूनिवर्सिटी के व्हीलर सीनेट हॉल में 8 दिसम्बर से 15 दिसम्बर तक किताबों की एक प्रदर्शनी लगेगी जो कई मायनों में ऐतिहासिक होगी। इस प्रदर्शनी में कई किताबों के अलावा एक किताब वह भी होगी जो पिछले कई शताब्दियों से मकबूलियत की बुलंदी पर है।
इस किताब का नाम है लैला- मजनू। लै और मजनू की प्रेमकथा पर लिखी यह किताब 17 वीं शताब्दी की है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि है फारसी में लिखी वास्तविक पांडुलिपि यहां मौजूद है।
पटना यूनिवर्सिटी की सेंट्रल लाइब्रेरी 1919 में शुरू हुई थी। इसमें देश और दुनिया की कई दुर्लभ पुस्तकें मौजूद हैं। यहां करीब 2 लाख 75 हजार किताबें हैं । इसमें 14वीं शताब्दी से लेकर 21वी शताब्दी तक की किताबें शामिल हैं।
लैला-मजनू की कहानी को लेकर इतिहासकार एकमत नहीं हैं। उनके जन्म और मृत्यु को लेकर भी अलग अलग राय जाहिर की गयी है। कुछ लेखक तो इसे काल्पनिक कहानी मानते हैं।
फारसी के प्रसिद्ध कवि निजामी गंजवी ने 12 वीं शताब्दी में लैला –मजनू पर एक काव्य लिखा था। मजनू का मूल नाम कैस था। लैला के देखने के लिए वह पागलों की तरह दर-दर भटकता था इस लिए उसे मजनू कहा जाने लगा। मजनू का मतलब दीवाना (क्रेजी) है।
लैला के पिता के विरोध के कारण दोनों की शादी नहीं हो सकी। लैला की शादी किसी दूसरे शख्स से हो जाती है। मजनू पागलों की तरह यहां वहां भटकते रहता है। यह एक दुखांत प्रेम कहानी है और आखिर में दोनों की मौत हो जाती है।
अमीर खुसरो ने भी 1299 में मजनू ओ लैला के नाम से एक किताब लिखी थी।
प्राचीन फारस देश में 9वीं शताब्दी के दौरान लैला मजनू की कहानी किंवदंती के रूप में मशहूर थी। इस लिए फारसी कवियों ने इस विषय में सबसे पहले लिखा।
फिर केन्द्रीय एशिया के देश अजरबैजान में लैला मजनू की कहानी बहुत मशहूर हुई। अजरबैजानी भाषा में भी किताबें लिखी गयीं।
लैला और मजनू ऐतिहासिक चरित्र हैं जो अब प्रेम का प्रतीक बन गये हैं। दोनों के जीवन पर लिखी किताब की अगर पांडुलिपि पटना में मौजूद है तो यह बड़े गौरव की बात है। अगर आप प्राचीन इतिहास को नजदीक से महसूस करना चाहते हैं तो पटना यूनिवर्सिटी की इस पुस्तक प्रदर्शनी में जरूर आइए।