क्या गयाजी में पिंडदान करने से 7 गोत्र और 121 पीढ़ियों का होता है उद्धार? जानिए मान्यताएं

आस्था जानकारी

पितृपक्ष में देश के कई स्थानों पर पिंडदान और तर्पण किए जाने की परंपरा है, लेकिन बिहार के गयाजी में पिंडदान का अलग महत्व होता है. धार्मिक मान्यता है कि गया में पिंडदान करने से 121 पीढ़ी और 7 गोत्र का उद्धार होता है. उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. धार्मिक मान्यता है कि पितृ पक्ष में श्राद्ध करने से पिंडदान सीधे पितरों तक पहुंचते है. इन दिनों में लोग अपने पितरों को याद कर उनके नाम पर उनका पिंडदान कर्म, तर्पण और दान आदि करते हैं. ताकि उनकी आत्मा तृप्त होकर लौटे. माना जाता है कि पितृपक्ष के दौरान यमराज भी पितरों की आत्मा को मुक्त कर देते हैं, ताकि वे धरती पर अपने वंशजों के बीच रहकर अन्न और जल ग्रहण कर संतुष्ट हो सकें.

श्रद्धा और विश्वास के साथ गयाजी कहा जाता
हिंदू धर्म में मृत व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया जाता है. पितृपक्ष के दौरान पितरों को तर्पण भी इसीलिए ही दिया जाता है. ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले. कहते हैं कि एक बार जो व्यक्ति गया जाकर पिंडदान कर देता है, उसे फिर कभी पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध या पिंडदान करने की जरूरत नहीं पड़ती है. अधिकतर लोगों की यह चाहत होती है कि मृत्यु के बाद उनका पिंडदान गया में हो जाए. सनातन धर्म में यह मान्यता है कि गया में श्राद्ध करवाने से व्यक्ति की आत्मा को निश्चित तौर पर शांति मिलती है. इसलिए गया तीर्थ को बहुत श्रद्धा और विश्वास के साथ गया जी कहा जाता है.

फल्गु नदी के जल में भगवान विष्णु का वास
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गया में भगवान राम, लक्ष्मण और सीता ने पिता राजा दशरथ का पिंडदान किया था. गरुड़ पुराण में बताया गया है कि यदि इस स्थान पर पितृपक्ष में पिंडदान किया जाए तो पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है. धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीहरि यहां पर पितृ देवता के रूप में विराजमान रहते हैं. इसलिए इसे पितृ तीर्थ भी कहा जाता है.

फल्गु नदी के जल में भगवान विष्णु का वास होता है. मान्यता है कि फल्गु नदी के जल और बालू से बने पिंड का दान करने से पितृ प्रसन्न होते हैं. उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. गया की इसी महत्ता के कारण लाखों लोग हर साल यहां पर अपने पूर्वजों का पिंडदान करने आते हैं.

7 गोत्र और 121 पीढ़ियों का उद्धार
विष्णुपद क्षेत्र के पंडा चंदन कुमार कौशिक के अनुसार गयाजी सर्व पितरों के लिए सबसे बड़ा स्थान है. संसार मे ऐसा कोई जगह नहीं जहां सर्व पितरों को मोक्ष हो सके. गया जी में पिंडदान करने से 7 गोत्र और 121 पीढ़ियों का उद्धार होता है. वैसे तो गया जी में सालों भर पिंडदान का विधान है लेकिन पितृपक्ष के दौरान सभी पितरों के लिए स्वर्ग का द्वार खोल दिया जाता है. यही वजह है कि यहां देश-विदेश से श्रद्धालु अपने पूर्वजों का पिंडदान करने आते हैं.

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