पटना के एक विद्वान ने एक अनोखा टाइपराइटर विकसित किया था जो काफी प्रचलित हुआ।
सरकारी विभागों में 1950-60 के दशक में हिन्दी में काम शुरू हुआ तो हिंदी टाइपराइटर की डिमांड भी बढ़ने लगी। पटना के कृपानाथ मिश्र ने एक देवनागरी लिपि वाले की- बोर्ड का आविष्कार किया जिसका नाम मिश्र कीबोर्ड रखा गया।
पटना विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर होने के साथ ही कृपानाथ मिश्र जर्मन भाषा के विद्वान भी थे। कृपानाथ मिश्र के बनाये कीबोर्ड के साथ टाइपराइटर को जर्मनी में ‘ओलंपिया’ नाम की कंपनी ने बनाया था जो बहुत ही मजबूत था।
भारत सरकार द्वारा कीबोर्ड को मंजूरी को लेकर ओलंपिया का कम्पटीशन रेमिंगटन व अन्य कंपनियों के साथ था। सबका की बोर्ड और शॉर्ट हैंड भिन्न था।
मिश्र जी के बनाये की-बोर्ड का फॉन्ट गणोश थी जो काफी पसंद किया जाता था और इस वजह से ओलंपिया के टाइपराइटर काफी डिमांड में थे। लेकिन विश्व युद्ध में यह कंपनी समाप्त हो गई, तब रेमिंगटन का बाजार में एकछत्र राज स्थापित हो गया।
कीबोर्ड वाली बात खत्म होने पर उन्होंने टेली पट्रर का एक नया प्रयोग आरंभ किया। उनका लक्ष्य देवनागरी लिपि में टेली पट्रर के आविष्कार करने का था। उस वक्त टेली पट्रर पर अंग्रेजी समाचार ही आता था। हिन्दी वाले को समाचार का अनुवाद करना होता था।