दरभंगा राज परिसर स्थित माधेवश्ररनाथ महादेव की महिमा अपरंपार है। इनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली है। ग्रेनाइट पत्थर के शिवलिंग की अर्चना काशी विश्वनाथ के दर्शन का फल देने वाली है। भूतनाथ महादेव दरभंगा राज की श्मशान भूमि के द्वार पर विराजते हैं।
त्रिशूल युक्त कलश से शोभित झक सफेद गुंबद के नीचे गर्भ-गृह में बाबा प्रतिष्ठित हैं। यह परिसर का सबसे प्राचीन मंदिर है। मंदिर निर्माण का सही समय स्पष्ट नहीं है। हालांकि कहा जाता है कि महाराज माधव सिंह ने परिसर में सबसे पहले इस शिवालय का निर्माण करवाया था।
भौर से दरभंगा राजधानी लाने वाले महाराज का शासन काल सन् 1775 से 1807 रहा है। मंदिर पर प्राचीन मिथिलाक्षर में खुदी जानकारी पढ़ना सहज नहीं है।
दुर्गा पंचायतन मंदिर के पुजारी पं. कपिलेश्वर झा कहते हैं कि मिथिला के लोग पहले अंतिम समय में काशी जाते थे। महाराज माधव सिंह ने मंदिर का निर्माण इसे ध्यान में रख कराया था।
ताकि भक्तो को काशी जाने की आवश्यकता न पड़े और काशी दर्शन का लाभ मिल जाए। इसी लिए मंदिर परिसर के पूरे फर्श में पत्थर है, लेकिन बीच में थोड़ी सी जमीन खुली रखी गई है, ताकि अंतिम समय में भूमि-स्पर्श हो सके।
मंदिर परिसर में दक्षिण की तरफ गंगा माता तथा उत्तर में भैरव विराजते हैं। महाराज ने सामने तालाब खुदवाये जिसमें पवित्र नदियों का जल दिया गया था। किनारे पर पंचवटी बड़, पीपल, आम, पाकड़ और गूलर के पेड़ लगवाये।
मान्यता है कि माधेवेश्वरनाथ शिव का दर्शन करने से लोगों की सारी मुरादें पूरी होती हैं और उनके आशीर्वाद से भव-सागर से मुक्ति मिल जाती है। गर्भ-गृह में बाबा के साथ ही पश्रिमोत्तर कोने में माता दुर्गा का दर्शन भी होता है।
बाहर में गर्भ-गृह के प्रवेश द्वार पर शिव-तनय गणेश और और हनुमान हैं तो भैरव मंदिर के सटे पश्चिम खुले परिसर में एक अन्य शिव लिंग भी है।
वैसे तो इस मंदिर में सालो भर भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन सावन मास विशेषतः सोमवारी के अवसर पर यहां भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है।
लोग विभिन्न नदियों से जल भरकर बाबा का जलाभिषेक करते हैं।
साभार-प्रो. अमलेन्दु शेखर पाठक