कजरी तीज को कजली तीज, बूढ़ी तीज और सातूड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है. कजरी तीज को निर्जला व्रत भी कहा जाता है. कजरी तीज का व्रत महिलाओं के लिए बेहद खास होता है. इस दिन सुहागिन महिलाओं के साथ कुंवारी कन्याएं भी व्रत रखती है. सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए कजरी तीज का व्रत रखती है तो वहीं कुंवारी कन्याएं अच्छा वर पाने के लिए इस व्रत को करती है. कजरी तीज के व्रत को सबसे कठिन व्रतों में से एक माना गया है. इस व्रत को स्त्रियां अन्न और जल का त्याग कर पूर्ण करती हैं.
कजरी तीज का पर्व उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार सहित हिंदी भाषी राज्यों में भक्ति और श्रद्धाभाव से मनाया जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, कजरी तीज का पर्व भाद्र मास में कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाता है. तृतीय तिथि के कारण ही इसे कजरी तीज कहा जाता है. कजरी तीज का व्रत इस साल 25 अगस्त 2021 दिन बुधवार को पड़ रहा है.
कजरी तीज व्रत 2021 शुभ मुहूर्त
- तृतीया तिथि प्रारंभ- 24 अगस्त 2021 दिन मंगलवार की शाम 4 बजकर 05 मिनट पर
- तृतीया तिथि समाप्त- 25 अगस्त 2021 दिन बुधवार की शाम 04 बजकर 18 मिनट पर
कजरी तीज की कथा
एक गाँव में किसान के चार बेटे थे. उनमे से तीन बेटों की पत्नियों के परिवार आर्थिक रूप से संपन्न थे. परन्तु सबसे छोटे बेटे की पत्नी का परिवार गरीब था. भादो के मास में सातूडी तीज के पर्व पर ससुराल से सत्तू आने की परंपरा हैं. परंपरा के अनुसार तीनो बड़ी बहुओं के मायके से सत्तू आया लेकिन छोटी बहु के यहाँ से नहीं आया. जिसके कारण छोटी बहुत का मन उदास हो गया. पति ने उससे उदासी का कारण पुछा तो उसने सारी बात बताई और पति को सत्तू लाने के लिए कहा. उसका पति सत्तू लेने के लिए बाजार में गया परन्तु उसे कही भी सत्तू नहीं मिला. वह अपनी पत्नी को नाराज नहीं देखना चाहता था. इसी उद्देश्य से रात के समय एक किराने की दुकान में गया और चने, गेहूँ और जौ लेकर पिसने लगा. तभी दुकान का मालिक आ गया और उसने पुछा क्या कर रहे हो. तब उसने पूरी कहानी सुनाई और कहा कि मेरे लिए यह सत्तू घर लेकर जाना बहुत जरूरी हैं. यह सुनकर दुकान मालिक ने कहा कि अब आप घर चले जाएँ. आज से आपकी पत्नी मेरी बेटी हैं और उसका मायका मेरा घर है.
अगले दिन वह दुकान मालिक ने अपने कहे अनुसार विभिन्न प्रकार के सत्तू और पूजा का सामान उस व्यक्ति के यहाँ भेज दिया. जिसे देखकर छोटी बहु बहुत खुश हो गयी. उसके पति ने उसे बताया की यह उसके धर्म पिता ने भेजा हैं. कजरी तीज का व्रत रखने से सौभाग्यवती स्त्री के परिवार में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है और भगवान किसी न किसी रूप में उनकी अवश्य मदद करता है.
कजरी तीज का महत्व
कजरी तीज का पर्व सुहागिन महिलाओं के जीवन में सुख शांति लाता है. इसके साथ ही दांपत्य जीवन से जुड़ी परेशानियों को दूर करता है. इस दिन विधि पूर्वक पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. कुंवारी कन्याओं को इस व्रत को करने से सुयोग्य वर की कामना पूर्ण होती है. इस दिन गाय की विशेष पूजा की जाती है. कजरी तीज पर पकवान भी बनाए जाते हैं. कजरी तीज व्रत का पारण चंद्रोदय के बाद किया जाता है.
कजरी तीज पूजन विधि
- कजरी तीज के दिन पूजन के स्थान पर मिट्टी और गोबर की सहायता से एक छोटी सी तालब जैसे आकृति का निर्माण करना चाहिए. नीम की एक डगाल को उसमे लगा दे. फिर उस पर पूजा के लाल कपडे की ओदनी लगा थे. उस तालाब में कच्चा दूध और ताजा जल डाले. कलश में आम के पत्ते लगाकर उसे चावल के धान पर स्थापित करे.
- उसके बाद गणेश जी और माता जी की मूर्ती विराजमान करे.
- सर्वप्रथम भगवान की प्रतिमाओं का दूध और गंगा जल से अभिषेक करे और नई पोशाक पहनाएं.
- कलश पर मेहँदी, रोली, कुमकुम, अबीर, गुलाल, चावल और नाडा चढ़ाकर पूजन प्रारंभ करे.
- उसके बाद गणेश जी और माताजी को भी मेहँदी, रोली, कुमकुम, अबीर, गुलाल, चावल और नाडा चढ़ाएं.
- मंदिर की दीवार या पूजा स्थल की दीवार पर कुमकुम, हल्दी और काजल की 13-13 बिंदिया लगाएं.
- पूजा के स्थान पर बनाए गए तालाब के पास में दीपक जलाएं. विधिवत पूजन करने के बाद व्रत की कथा का वाचन करना चाहिए.
- कथा के बाद चंद्रमा को अर्ध्य देने की परंपरा हैं. चन्द्रमा को जल के छीटे देकर कुमकुम और चावल चढ़ाएं.
- चांदी की अंगूठी और धान के दाने लेकर जल चन्द्रमा की ओर समर्पित करे और अपने नियत स्थान पर खड़े होकर चार बार परिक्रमा करे.