‘कहानीघर’ बचपन को संजोने के लिए लगातार प्रयासरत तो है ही, पर इन दिनों पूरे जोश के साथ बच्चों के लिए कहानीबाज़ नामक स्टोरीटेलिंग ओलिंपियाड के तैयारी में लगी है। कहानीघर की संस्थापक मीनाक्षी झा बनर्जी ने बताया, ” विद्यालयों में बच्चों के लिए विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। मैथ्स और साइंस ओलिंपियाड से लेकर सभी तरह खेलकूद की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती लेकिन कहानी लिखने व सुनाने को लेकर किसी तरह की कोई प्रतियोगिता आयोजित करने का प्रचलन कभी नहीं रहा। कहानीघर की स्थापना का एक मूल उद्देश्य रहा है कि कहानियाँ लिखने व सुनाने की जो परंपरा विलुप्त होती जा रही है उसे पुनर्जीवित किया जाए। इसी उद्देश्य की पूर्ति की दिशा में ‘कहानीबाज़’ एक छोटा-सा प्रयास है।”
कहानीबाज़ के प्रारूप के बारे में बताते हुए श्रीमति बैनर्जी ने कहा कि प्रथम चरण में सभी स्कूली बच्चों से कहानियाँ आमंत्रित की गयी हैं। कहानियाँ हिंदी, अंग्रेज़ी और बिहार के किसी भी प्रांतीय भाषा की हो सकती हैं। दो आयु-वर्ग, 7-10 और 11-15 साल रखा गया है। प्रविष्टियां भेजने की अंतिम तिथि २० सितम्बर रखा गया है। प्रविष्टियां निशुल्क हैं। कोई भी बच्चा अपनी कहानी kahaanighar.patna @gmail.com पर ईमेल द्वारा भेज सकता है। उसके बाद एक सिलेक्शन पैनल द्वारा, 50 कहानियों का चयन होगा और इन 50 कहानियों को एक कहानी-संग्रह में प्रकाशित कर, 12 नवंबर को लोकार्पित किया जाएगा। ढेर सारे पुरस्कार भी दिए जाएंगे। 10 नामचीन हस्तियों के सिलेक्शन पैनल में पद्मश्री उषा किरण खान, अनुराधा प्रधान, निवेदिता शकील, गीताश्री, हृषिकेश सुलभ, अनीश अंकुर , पवन, नवल शुक्ल, प्रणव कुमार चौधरी और दीपक यात्री होंगे। रेडियो के नामचीन स्टोरीटेलर व गांव कनक्शन अखबार के संस्थापक, नीलेश मिश्र को भी आमंत्रित किया जा चुका है। उन्होंने कहानीबाज़ में शामिल होने को लेकर अपनी सहमति प्रदान की है।
कहानीघर के सह संस्थापक एवं डिज़ाइन थिंकर रॉनी बनर्जी ने कहा , “कहानियाँ मनोभावों को व्यक्त करने का एक सशक्त माध्यम हैं। कहानी लिखने से न केवल बच्चों में अभिव्यक्ति की क्षमता का विकास होता है वरन उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास होता है। कहानियाँ लिखने से बच्चों में सृजनात्मकता का विकास होता है। एक सृजनात्मक बच्चा ही आगे चलकर अपने जीवन में सफलता की ऊँचाइयों को छूता है, चाहे वो डॉक्टर बने, इंजीनियर बने या प्रशासक बने।” उन्होंने वर्तमान जीवनशैली पर चिंता जाहिर करते हुए कहा,”टीवी मोबाइल के युग में दादी-नानी की कहानियाँ विलुप्त होती जा रही हैं।आज एक अंधी दौड़ चल पड़ी है अपने बच्चों को डॉक्टर और इंजीनियर बनाने की। इस अंधी दौड़ का नतीज़ा है कि बच्चों में तनाव अत्यधिक बढ़ता जा रहा है। कहानियाँ बच्चों को उस तनाव भरे माहौल से दूर एक स्वच्छंद अभिव्यक्ति का अवसर प्रदान करती हैं। हमें पूरी उम्मीद है कि बच्चे इसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेंगे| हमारा लक्ष्य है कि ज्यादा से ज्यादा बाल लेखकों के साथ हम मंच साझा कर कर पाएं। विशेष जानकारी के लिए 9973156169 पर संपर्क कर सकते हैं।
कहानीघर के सक्रिय सदस्य एवं कहानीबाज़ के समन्वयक अमित विक्रम ने बताया, “कहानीबाज़ में प्रतिभागिता के लिए पटना के सभी स्कूलों को आमंत्रण भेजा जा चुका है। डीपीएस, केंद्रीय विद्यालय, सेंट ज़ेवियर्स, ग्लोबल प्रेसीडेंसी, पटना सेंट्रल स्कूल सहित पटना के सभी नामी गिरामी स्कूल कहानीबाज़ में अपनी प्रतिभागिता पुष्ट कर चुके हैं। इतना ही नहीं देश के कोने-कोने से स्कूल एवं सैंकड़ों बच्चे स्वतंत्र रूप से अपनी कहानियाँ ईमेल व व्हाट्सएप्प के माध्यम से भेज रहे हैं। 12 नवम्बर, 2017 ‘कहानीबाज़’ थीम पर आधारित लघु नाटक की प्रस्तुति भी होगी , जिसकी तैयारी शुरू हो चुकी है। साथ ही पुस्तक विमोचन, कहानी पाठ, नाटक और आनुष्ठानिक रीतियों के अलावे उस दिन, एक स्थानीय युथ ग्रुप के द्वारा बैंड प्रेजेंटेशन भी रहेगा। कहानीबाज़ और कहानीघर थीम पर दो गाने भी रिलीज़ किये जाएंगे।”
कहानीघर के मीडिया प्रभारी उत्कर्ष आनन्द ‘भारत’ ने कहा कि वर्तमान समय में बच्चे साहित्यिक विधाओं से विमुख होते जा रहे हैं जो एक चिंता का विषय है। ऐसे में कहानीबाज़ बच्चों में साहित्यिक अभिरुचि को जगाने का काम करेगा। ये प्रतियोगिता बच्चों में छिपी हुई साहित्यिक प्रतिभाओं को निखारने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।
निल बटे सन्नाटा का प्रिंसिपल श्रीवास्तव एवं गैंग्स ऑफ़ वासेपुर में….. की यादगर भूमिकाएं निभा चुके सिने कलाकार पंकज त्रिपाठी के द्वारा शुभकामना संदेश मे कहा गया है ” मैं कहानीघर की गतिविधियों को बराबर देखता रहता हूँ। बहुत अच्छा लगा, जब सुना कि, कहानीबाज़ का आयोजन हो रहा है। ये भी एक तरीका है, सूर्योदय,नदी, पहाड़ और जुगनुओं की दुनिया को कागज़ पर उकेरे जाने का, कहानियों के माध्यम से। दिल से बधाई!”
बचपन को मूलभूत रूप से संपूर्णता के साथ व्यतीत करने योग्य हरसंभव प्रयोग और प्रयास का मौका होना ही चाहिए, क्योंकि बचपन कभी वापस नहीं आता. एक बार गया तो फ़िर कभी नहीं लौटा…इसी सोच के साथ कहानीघर शुरू हुआ सन् 2014 में। आज कहानीघर में सप्ताह के सातो दिन कुछ न कुछ गतिविधियां होती ही रहती हैं। ४०-५० बच्चे हर शाम यहाँ मिल ही जाते हैं। उनके लिए निशुल्क पढाई की व्यवस्था है। साथ ही, शनिवार और रविवार को फिल, क्राफ्ट्स, और कहानियों का सत्र तो होता ही है। पटना के जाने माने कलाकार और व्यक्तित्वों का आना जाना लगा रहता है।