जितिया पर्व में मछली और मरुआ का है खास महत्व! मिथिलांचल में ये हैं मान्यताएं

आस्था जानकारी

 जितिया मिथिलांचल का बेहद ही खास पर्व होता है. क्योंकि इस पर्व को स्त्री अपने पुत्र की लंबी आयु और अपने सुहाग के रक्षा के लिए करती है. लेकिन क्या आपको पता है कि यही एक ऐसा पर्व है जिसमें मछली खाकर पूजा की जाती है. आमतौर पर सनातन धर्म में लोग पर्व से कुछ दिन पूर्व मांसाहार खाने को त्याग देते हैं. यहां तक की कई सारे लोग लहसुन प्याज तक खाना छोड़ देते हैं. लेकिन जितिया पर्व में मान्यता है की मछली और मारुआ के रोटी खाकर इस पर्व की शुरुआत की जाती है. इसपर विशेष जानकारी दरभंगा के पंडित ने दी.

क्या कहते हैं ज्योतिष विभाग के विभागाध्यक्ष
कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर ज्योतिष विभाग के विभाग अध्यक्ष डॉ. कुणाल कुमार झा ने बताया कि जितिया जिसको जीमूतवाहन व्रत भी कहा जाता है. सनातन में यही एक ऐसा व्रत है जिसमें मछली कहते हैं और मरुआ का भक्षण किया जाता है. अर्थात मछली और मरुआ की रोटी को खाई जाती है. व्रत से एक दिन पूर्व और रात के अंतिम भाग में अर्थात सप्तमी में उठगन किया जाता है.

जितिया व्रत पूरा अष्टमी का जो मांग होता है उसके आधारित यह व्रत निर्धारित किया गया है. इसे महालक्ष्मी व्रत भी कहा जाता है. इसमें पारण का जो विधान है उसमें खीर और अंकुरी से किया जाता है. इस सब को जितिया को प्रसाद देकर इसका प्रसाद ग्रहण कर अन्य चीज खाई जाती है. यह व्रत स्त्री अपनी संतान की आयु वृद्धि के लिए करती है. ये व्रत 6 अक्टूबर 2023 को पड़ेगा.

जानिए मरूवा और मछली का महत्व
ज्योतिषाचार्य डॉक्टर धीरज कुमार झा ने बताया कि मिथिला में लगभग हर पर्व को किसी ने किसी फसल से जोड़कर मनाया जाता है. इसी वजह से अभी मरुआ का सीजन है तो जितिया में इस से बनी रोटी सेवन का किया जाता है. इसमें पौष्टिक आहार भी पाया जाता है , साथ में मिथिला में मछली के बिना यह पर्व अधूरा माना जाता है, इसलिए इसका भी विशेष महत्व है.

इसके ठीक बाद दुर्गा पूजा शुरू होगी. इसमें 10 दिन तक मांसाहार भोजन वर्जित है. इसलिए भी एक कारण हो सकता है.

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