बिहार के महागठबंधन में राजद और जदयू के बीच की दरार धीरे धीरे खाई बनती जा रही है। दोनों दलों के बड़े नेता पब्लिकली इस बात को मानने से इनकार करते आ रहे हैं पर दलों के बीच की बढ़ती दूरियां सबकी नज़रों में आ रहीं है। बिहार दिवस समारोह के आयोजन में आमंत्रण कार्ड पर डिप्टी चीफ मिनिस्टर तेजस्वी यादव का नाम नहीं छापने पर लालू प्रसाद की पूरे परिवार ने पूरे समारोह का बहिष्कार कर दिया। राजद और जदयू के बीच की दरार की वजह से बिहार में कई बड़े निर्णय आधार में लटक गए हैं।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार राजद ने दिल्ली में एमसीडी का चुनाव बिना किसी गठबंधन के अकेले लड़ने का फैसला किया है। यह फैसला इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि जदयू पहले से ही दिल्ली में एमसीडी चुनाव लड़ने का एलान कर चुकी है। पिछले कई महीनों से दिल्ली में चुनाव को लेकर जदयू कड़ी म्हणत कर रही है। पार्टी ने पूर्व विधान पार्षद संजय कुमार झा को दिल्ली का प्रभारी बनाया हुआ है .
जदयू के पक्ष में मंत्री नीतीश कुमार दिल्ली में सभाओं को संबोधित करेंगे। वहीं अब राजद का यह निर्णय कि वह अपने प्रत्याशी उतारेगा, जदयू को झटका देने वाली खबर है। राजद की नजर 60 से 70 सीटों पर है।
दूसरी और भाजपा ने भी बिहार के मतदाताओं को रिझाने का फैसला पहले ही दिल्ली में किया है। बिहार समेत पूर्वांचल के मतदाताओं को लुभाने के के लिए ही भाजपा ने सांसद मनोज तिवारी को दिल्ली का प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। दिल्ली के सभी चुनाव को बिहार के रहने वाली बड़ी आबादी प्रभावित करती हैं। दिल्ली में बिहार के मूल निवासी लोक सभा और विधान सभा का चुनाव जीतते आये हैं।
दिल्ली के वोटरों का मिजाज पढ़ने का सबसे बड़ा मौका दिल्ली में एमसीडी के चुनाव को माना जाता है। इस बार एक तरफ अरविंद केजरीवाल की अग्नि-परीक्षा होगी जिनकी ताकत रेहड़ी और ऑटो चालकों समेत ऐसी अन्य कमेटियां हैं। दूसरी और भाजपा की दिल्ली में चुनौती देखने को मिलेगी। हालाँकि एमसीडी में अभी भाजपा की बादशाहत कायम है और कांगेस कम- बैक के लिए आखिरी कोशिश करेगी।
अब जब खबर आ रही है की दिल्ली के एमसीडी चुनाव में जदयू के साथ राजद भी मैदान में उत्तर रहा है, ऐसे में सभी दल के निगाह और विभाजन बिहारियों के वोटों में ही होगा। इस बात का फायदा किसे होगा, ये अभी नही कहा जा सकता।