श्रावण मास कृष्ण पक्ष अष्टमी यानी सोमवार, 14 अगस्त को श्रीकृष्ण Janmashtami है। आज से पांच हजार 243 वर्ष पहले भाद्रपद मास अष्टमी, रोहिणी नक्षत्र, वृष के चंद्रमा में सोलह कलाओं से पूर्ण भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था।
इस वर्ष 14 अगस्त और वैष्णवों द्वारा 15 अगस्त को Janmashtami मनायी जाएगी। भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी की मध्य रात्रि को भगवान श्रीकृष्ण धरा पर अवतरित हुए। इस वर्ष ऐसा संयोग हमें 14 अगस्त को ही प्राप्त हो रहा है। 14 अगस्त को अष्टमी तिथि की शुरुआत शाम 5:41 बजे से हो रही है।
जो 15 अगस्त यानी मंगलवार के दिवा 3:26 बजे तक रहेगा। इस कारण मध्यरात्रि व्यापणी तिथि हमें 14 अगस्त को ही प्राप्त हो रहा है। इसलिए हमें Janmashtami 14 अगस्त को ही मनानी चाहिए। जन्माष्टमी के निमित्त व्रत के एक दिन पहले यानी रविवार, 13 अगस्त से ही अल्पाहारी और संयमित रहना चाहिए।
अष्टमी यानी 14 अगस्त के प्रात: स्नानादि के बाद हाथ में जल, कुश, अक्षत और पुष्प लेकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। मध्याह्न काल में पुन: काले तिल के जल से स्नान कर माता देवकी के लिए सूतिका गृही निर्धारित करें और इसे स्वच्छ और सुशोभित कर रखें।
शुभ कलश स्थापित कर सोना, चांदी, तांबा, पीतल, मिट्टी आदि की प्रतिमा बनाकर या तसवीर स्थापित करें। इसमें श्रीकृष्ण को गोद में ली हुई माता देवकी हों और लक्ष्मी जी उनका चरण स्पर्श करती हुई हों, ऐसा भाव प्रकट हो। इसके बाद यथा समय भगवान के प्रकट होने की भावना करके वैदिक विधि, पंचोपचार, दसोपचार, षोड़षोपचार, आवरण पूजा आदि में जो संभव हो करनी चाहिए।
पूजन में माता देवकी, वसुदेव, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और माता लक्ष्मी इन सभी का नाम क्रमश: निर्दिष्ट करना चाहिए। व्रत का पारना वैसे तो अष्टमी तिथि के बाद करें। यदि सक्षम न हों तो मंगलवार, 15 अगस्त को सूर्योदय के बाद ही व्रत का पारण किया जा सकता है।