पटना: मेरी बड़ी बहन का बचपन में विवाह हो गया। इस सामाजिक कुरीति ने मन पर ऐसी छाप छोड़ी कि मेरे मन में तभी इसके खिलाफ लड़ने का जज्बा पैदा हो गया। बड़ी होने पर मैंने तय किया कि लड़कियों को शिक्षित करूंगी। मैंने जब घर की दहलीज लांघी तो लोगों ने खूब ताने मारे, परिवार में भी विरोध हुआ लेकिन मैंने तो लक्ष्य तय कर लिया है। आज उसी राह हूं और अब परिवार वाले भी साथ देते हैं।
300 बच्चियों को दे चुकी है तालीम…
लड़कियों में शिक्षा का अलख जगा रही कटिहार के विनोदपुर-दुर्गापुर की रहने वाली शगुफ्ता बानो कहती हैं पारिवारिक बेड़ियों को तोड़ना इतना आसान नहीं था। 2006 से भूमिका बिहार से जुड़कर वह अब तक तीन सौ बच्चियों को नि:शुल्क शिक्षित कर चुकी हैं। वह रोज कटिहार से 65 किलोमीटर दूरी तय कर अररिया जाती हैं और लड़कियों को पढ़ाती हैं। शगुफ्ता बताती हैं शुरुआती दिनों में उन्हें इसके लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। घर के लोग रोज अररिया जाने का विरोध करते थे, लेकिन मुझे तो लड़कियों के सपनों को पंख देना था। इसलिए मैंने इसकी परवाह नहीं की। शगुफ्ता आज बाल विवाह, लैंगिक समानता, घरेलू हिंसा, ह्यूमन ट्रैफिकिंग जैसी समस्याओं की भी लड़ाई लड़ रही हैं।
शगुफ्ता से पढ़ी कई बच्चियां आज आईटीआई, नीट, आईआईटी जैसे तकनीकी संस्थानों में पढ़ रही है। दाखिला भी लिया है। करीब तीन सौ से ज्यादा अल्पसंख्यक बच्चियों को तालीम दे चुकी शगुफ्ता के समूह से जुड़ी कुछ बच्चियों ने पिछले साल बैंकिंग चयन परीक्षा में भी अच्छा प्रदर्शन किया था। अररिया जिले में भूमिका बिहार संस्था से जुड़कर 13 समूह एवं इससे जुड़े सात केंद्र में प्राथमिक शिक्षा देने का दायित्व शगुफ्ता पर है। वह यहां से निकली बच्चियों को आगे कहां पढ़ाई करनी है, इसके लिए भी बताती हैं।
बेटियां ही बदलाव करेंगी
2006 में शगुफ्ता ने भूमिका बिहार संस्था से जुड़कर काम शुरू किया था। हालांकि इन दस सालों में उसे काफी संघर्ष करना पड़ा, गांव गलियों में घूमकर जब वह शिक्षा की अलख जगाती थी तो बगल से गुजरने वाले लोग ताना मारते थे। वह कहती है बेटियों के प्रति सोच आज भी बहुत नहीं बदली है। शगुफ्ता बताती हैं कि सामाजिक सोच को बदलना इतना आसान नहीं है, लेकिन बदलाव आएगा। हम बेटियां ही बदलाव करेंगी।