इस परिवार के चाक की रफ्तार सालभर रहती है बरकरार, सरकार से लगा रखी है यह उम्मीद

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दीवाली दीपों का उत्सव है. दीपक की रोशनी के साथ सुख और समृद्धि की लोग कामना करते हैं. इसी को लेकर लोग अपने-अपने घरों में दिवाली मनाने की तैयारी में जुटे जाते हैं. बिहार के बेगूसराय में एक परिवार ऐसा भी है जो अपने पुश्तैनी मिट्टी के बर्तन बनाने के काम से खुशहाली की जिंदगी जी रहे हैं. ये लोगों के घरों में प्रकाश फैलाने में अपनी भूमिका निभा तो रहे ही हैं. साथ ही वैसे कुम्हार परिवार के लिए प्रेरणा स्रोत भी हैं, जो कहते हैं कि मिट्टी के बर्तन बनाने से अच्छी आमदनी नहीं होती है और इस पेशे को हम छोड़ रहे हैं. मिट्टी से बने बर्तनों की डिमांड साल भर दीपक और पूजा-पाठ के अलावा मिट्टी का कलश, खिलौने आदि की भी बिक्री होती है.

बेगूसराय जिला मुख्यालय से 24 किलोमीटर दूर चेरिया बरियारपुर गांव के रहने वाले मोगल पंडित अपने बेटे दिलीप कुमार, पत्नी रामा देवी, भाई सौरव कुमार, अशोक पंडित और अंकित कुमार के साथ मिलकर अपने घरों में चाक को रफ्तार देने का काम करते हैं. रामा देवी ने बताया कि महीने में 2500 में एक टेलर मिट्टी , 200 रुपए का पुआल, 500 रुपए की सुखी लड़की खरीद कर मिट्टी के बर्तन बनाने की तैयारी में लग जाते हैं. यह कार्य साल भर चलता रहता है. वहीं, दीपावली के दौरान चाक की रफ्तार काफी तेज करनी पड़ती है, क्योंकि डिमांड अधिक होती है. रामा देवी ने बताया कि परिवार के सभी सदस्य मिलकर मिट्टी से 17 प्रकार के प्रोडक्ट्स बनाने का काम कई साल से करते हैं.

चाक की रफ़्तार तय करती है कमाई
मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार मोगल पंडित बताते हैं कि यह हमारा पुश्तैनी धंधा है और इसी से जीविका चलती है. उन्होंने बताया कि जैसे-जैसे चाक की रफ्तार तेज होते जाती है, उसी तरह कमाई का दायरा भी बढ़ जाता है. दीपावली के आस-पास तो 10 हज़ार से भी ज्यादा मिट्टी के बर्तन बेच लेते हैं . लेकिन अन्य दिनों की बात करें तो 4 हजार तक मिट्टी के बर्तन, दीप आदि बेचकर अच्छी कमाई कर लेते हैं. उन्होंने बताया कि बैंक अगर लोन दें या फिर कहीं से आर्थिक सहायता मिले तो इस कारोबार को और भी आगे बढ़ा सकते हैं. जिससे आमदनी का दायरा भी बढ़ जाएगा.

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