मोक्षनगरी गयाजी में पिंडदान के 15वें दिन वैतरणी सरोवर में पिंडदान और गौदान करने का नियम है. ऐसी मान्यता है कि देवनदी वैतरणी में स्नान करने से पितर स्वर्ग को जाते हैं. पिंडदान और गोदान करने के बाद सरोवर के निकट स्थित मार्कण्डेय शिव मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करने का भी प्रावधान है. पितरों को स्वर्गलोक में जाने के क्रम वैतरणी नदी पार करना पड़ता है. नदी को पार करने के लिए गौ-दान ही एकमात्र साधन है. बिना गौ-दान किए हुए पितृ के मोक्ष की प्राप्ति हो ही नहीं सकती. इसी उद्देश्य को लेकर श्रद्धालु गौ-दान वैतरणी सरोवर पर करते हैं.
कहा जाता है वैतरणी पर जो गाय दान नहीं करता वह दरिद्र हो जाता है. गौमूल्य के रूप में जितनी शक्ति हो उतना ब्राह्मण को देना चाहिए. पिंडदान के 15वें दिन शस्त्रादि से मारे गए लोगों की श्राद्ध होती है, बांकी अन्य लोगों की नहीं. इस दिन पिंडदान न करके वैतरणी पर तर्पण और गौदान करें. यदि किसी की पितर तिथि हो तो अवश्य पिंडदान करना चाहिए. वैतरणी तालाब पर पिंडदानी अपने पितरों के स्वर्ग लोक जाने को लेकर गोदान करते हैं.
इस तर्पण से 21 कुलों का होता उद्धार
मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने गया क्षेत्र में वैतरणी नदी को पितरों उतारने के लिए यमलोक से अवतरित करवाया था. इस तर्पण से 21 कुलों का उद्धार होता है. गोदान और तर्पण के बाद पिंडदानी पास में स्थित मारकंडे महादेव का दर्शन और पूजन करते हैं. गाय दान करते समय पिंडदानी के हाथों में चांदी, सोना, तांबा, तिल, कुश जो सुलभ हो उसे जरूर रखना चाहिए. ऐसी मान्यता है कि खाली हाथ किया गया तर्पण व पिंडदान स्वीकार नहीं किया जाता है.
गाय की पूंछ पकड़ कर रोते हैं परिजन
वैतरणी तालाब में पिंडदानियों ने पिंडदान करने के उपरांत पितरों को मुक्ति दिलाने के लिए गाय दान करते हैं. उस समय बहुत से पिंडदानी गाय के सिर को पकड़कर रोते बिखलते व भावुक होते हैं. कुछ पिंडदानी इस बात से खुश होते हैं कि अब उनके पितरों को इहलोक से परलोक चले जाएंगे. सभी पिंडदानी गाय की पूंछ पकड़ते हैं और पंडितजी मंत्रोच्चारण करते हैं. यहां की ऐसी मान्यता है कि जिनकी मौत शास्त्रादि व अकाल होती है. वैसे पितरों के परिवार के सदस्य वैतरणी तालाब में आकर स्नान करते है और पिंडदान करने के साथ ही गाय का दान करते है.