कुछ ऐसे भी IAS और IPS अफसर हैं, जो अपनी साख बचाए हुए हैं। उनके कारनामे आज मिशाल के तौर पर पेश किए जा रहे हैं। भारत देश में आज भी लोग महिलाओं को पुरूषों के मुकाबले कमजोर मानते हैं। लेकिन महिलाएं भी किसी से कम नहीं हैं। वो भी कई जगह अपने हुनर का परिचय देने से पीछे नहीं हट रही हैं।देश की महिलाओं ने लगभग हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति महसूस करा रही हैं। राजनीति हो या नौकरशाही में या प्रतिष्ठित पुलिस बल में रहकर, हर जगह ये अपनी प्रतिभा तो दिखा रही हैं।कुछ ऐसी ही कहानी है भारत की इस IPS ऑफिसर की जो दुश्मनों के लिए काल हैं और आज जनता की रक्षक बन कर अपना दायित्व निभा रही हैं। धीरे-धीरे ही सही भारत में लिंगभेद को मिटाने का काम भी कर रही हैं ये ऑफिसर्स। आज हम बात करेंगे एक जांबाज अफसर सौम्या सम्बासिवन की जिनके काम के बारे में लगातार बातें होती रहती हैं।
वह असल जिंदगी की मर्दानी हैं। वह युवा हैं। बाहर से कितनी भी कोमल क्यों न दिखें, पर कानून तोड़ने वालों के लिए अंदर से उतनी ही सख्त हैं। अपने अधिकारों के निर्वाह के लिए बे-खौफ। अपराधियों के लिए खौफ का दूसरा नाम। आत्मविश्वास से भरी और दूसरों के लिए प्रेरणादायक। यह कोई और नही, बल्कि बुलंद हौसले का दूसरा नाम है, सीआईडी की उप महानिरीक्षक सोनिया नारंग।
कानून के सामने सबको समान रूप से देखने वाली सोनिया नारंग हमेशा से सुर्खियों में रही हैं। आइए जानते हैं इस फौलादी इरादों से लबरेज आईपीएस अधिकारी से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें।
सोनिया नारंग 2006 में उस वक्त सुर्ख़ियों में आई, जब दावणगेरे में पुलिस अधीक्षक के रूप में तैनात थी। उस समय यह शहर हिंसक विरोध प्रदर्शनों में जल रहा था। सत्तारूढ़ दल भाजपा के खिलाफ कांग्रेस कार्यकर्ता प्रदर्शन कर रहे थे। प्रदर्शन ने हिंसक रूप ले लिया और दोनो दलों के कार्यकर्ता आपस में भिड़ गए। ऐसी विषम परिस्थिति में सोनिया नारंग ने लाठी चार्ज करने का आदेश दिया। लेकिन भाजपा के विधायक रेणुकाचार्य ने जाने से मना कर दिया। कई बार मना करने पर भी जब विधायक ने बात नही सुनी तो सोनिया नारंग ने अपना आपा खो दिया और विधायक को थप्पड़ जड़ दिया।बाद में विधायक हाथ धो कर उनके पीछे भी पड़े, लेकिन उनका ट्रांसफर नही करा सके।
सोनिया नारंग बचपन से ही आइपीएस अधिकारी बनना चाहती थीं। वो कहती हैं, “मेने कभी कुछ और नही सोचा। हाई स्कूल से ही सिविल सेवाओं में आना चाहती थी। स्नातक होने के बाद, मैं यूपीएससी परीक्षा के लिए तैयारी शुरू कर दी थी। जबकि हाई स्कूल में ही जब कभी मुझे समय मिलता था तो मैं प्रतियोगी परीक्षाओं की पत्रिकाओं को पढ़ती थी।”
सोनिया नारंग कर्नाटक कैडर में 2002 बैच की IPS अधिकारी हैं। सोनिया नारंग ने 1999 में पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी और साथ ही समाजशास्त्र में वह स्वर्ण पदक विजेता भी थीं। उनके पिताजी भी खुद एक प्रसासनिक अधिकारी हैं। लेकिन उनसे जुड़े कई ऐसे मामले हैं जो उनकी ईमानदारी की मिशाल पेश करते हैं।
नारंग की पहली तैनाती कर्नाटक के गुलबर्गा जिले में हुई। उन्हें चुनावों के प्रबंधन की जिम्मेदारी दी गई थी। गुलबर्गा आपराधिक गतिविधियों लिए जाना जाता है। बेलगाम सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र है। क़ानून को बनाए रखने के लिए सोनिया नारंग दिन रात अपने अधिकारों के प्रति तत्पर्य रहती थी।
कर्नाटक पुलिस के इतिहास में नारंग डिप्टी कमिश्नर बनने वाली दूसरी महिला थीं। वह कहती हैं, “ईमानदारी और साहस प्रशासन के शक्तिशाली हथियार हैं। अगर आपके पास यह दोनो है तो कोई भी आप को प्रभावित नही कर सकता भले ही चाहे वो कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो।”
अब आपको बताते है एक ऐसा ही वाक्या सोनिया अपनी 13 साल की नौकरी में कर्नाटक के कई बड़े शहरो में तैनात रह चुकी हैं। अपनी नौकरी के दौरान वह जहां भी गईं क्रिमिनलों को भागने पर मजबूर कर दिया।
मुख्यमंत्री लालकृष्ण सिद्धारमैया के एक आरोप के जवाब में नारंग ने उन्हें जवाब दे डाला था। नारंग पर 16 हजार करोड़ रुपए के खनन घोटाले का आरोप लगा तो उन्होंने मीडिया में एक बयान जारी किया। जिसमे, उन्होंने साफ कहा कि उन्होंने राज्य में अवैध खनन के लिए कभी भी प्रोत्साहित नहीं किया।
नारंग ने लोकायुक्त कार्यालय में भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसकी वजह से लोकायुक्त न्यायमूर्ति वाई. भास्कर राव को इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर होना पड़ा और उनके बेटे वाई. अश्विन को गिरफ्तार कर लिया गया।
पिता एएन नारंग उनके रोल मॉडल हैं। वह पुलिस अधीक्षक के रूप में सेवानिवृत्त हुए थे, जबकि पति गणेश कुमार बिहार कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं।