ये वक्त-वक्त की बात है। कल तक जो IAS अफसर जनता की नजरों में हीरो था आज वह कानून की नजर में भगोड़ा बन गया है। आम आदमी इस बात से हैरान है कि जो अफसर इतना ईमानदार और सख्त दिखायी देता था आज वह BSSC (बिहार राज्य कर्मचारी चयन आयोग) पर्चा लीक मामले में भगोड़ा घोषित किया गया है। सीके अनिल देश के उन चुनिंदा अफसरों में एक हैं जिन्होंने राजनीति के अपराधीकरण पर जोरदार प्रहार किया था।
फरवरी 2005 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले सी के अनिल (चन्द्रकांत कुमार अनिल) को सीवान का डीएम बनाया गया था। उस समय सी के अनिल की छवि एक कड़क IAS अफसर की थी। जब सी के अनिल सीवान के डीएम बने थे उस समय मो. शहाबुद्दीन सीवान के राजद सांसद थे। सीवान में तब शहाबुद्दीन की समानांतर सरकार चलती थी।
शहाबुद्दीन ने सीवान में आतंकराज कायम कर रखा था। यहां शहाबुद्दीन को कोई नाम से नहीं बल्कि साहेब कह के बुलाता था। सन 2000 के बाद वह सीवान में मालिक-मुख्तार की तरह काम करने लगा। सीवान में जमीन के झगड़े, पट्टीदारी के झगड़े, यहां तक कि पारिवारिक झगड़े शहाबुद्दीन के दरबार में सुलझाये जाने लगे। साहेब की तय फीस पर डॉक्टर मरीज देखते थे।
सीवान का डीएम बनते ही सी के अनिल ने अपना जलवा दिखाना शुरू कर दिया। इस कड़क डीएम ने फरमान जारी कर दिया कि विधानसभा चुनाव को लेकर शहाबुद्दीन छह महीने तक सीवान नहीं आ सकते। डीएम अनिल ने शहाबुद्दीन की कुंडली खंगालनी शुरू की। उन्होंने पाया कि शहाबुद्दीन ने 2004 के लोकसभा चुनाव में पेंडिंग केस के बारे में गलत जानकारी दी है। राजद सांसद शहाबुद्दीन ने चुनाव आयोग को दिये हलफनामे में अपने ऊपर पेंडिग केस की संख्या 19 बतायी थी जब कि उस समय मुकदमों की असल संख्या 34 थी। डीएम अनिल ने शहाबुद्दीन के खिलाफ FIR दर्ज करने का आदेश दे दिया।
24 अप्रैल 2005 को सी के अनिल ने तत्कालीन एसपी रत्न संजय के साथ मिल कर शहाबुद्दीन के किले को ध्वस्त कर दिया था। इसके पहले किसी ने शहाबुद्दीन पर हाथ डालने की ऐसी हिम्मत नहीं दिखायी थी।
करीब 400 पुलिस बल के साथ डीएम और एसपी ने शहाबुद्दीन के प्रतापपुर स्थित घर को चारो तरफ से घेर लिया। छापामारी में शहाबुद्दीन के घर से एके-47 राइफल बरामद हुई पर पाकिस्तानी ऑर्डिनेंस फैक्ट्री की मुहर लगी थी। ये हथियार केवल पाकिस्तानी सेना के लिए होते हैं। रात में देखने वाली दूरबीन भी मिली थी जो कि सिर्फ सेना के उपयोग के लिए होती है। संरक्षित जीव शेर और हिरण के खाल भी बरामद हुए थे।
इस छापेमारी के बाद उस वक्त के डीजीपी डीपी ओझा ने शहाबुद्दीन के पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ से संबंध होने की बात स्वीकारी थी। इसे साबित करने के लिए उन्होंने सौ पेज की रिपोर्ट पेश की थी । लेकिन ओझा का तत्कालीन बिहार सरकार ने तुरंत तबादला कर दिया था।
सी के अनिल और रत्न संजय की ये कार्रवाई इस लिए ऐतिहासिक क्यों कि 2001 में शहाबुद्दीन ने पुलिस को अपनी ताकत दिखा दी थी।
मार्च 2001 में सीवान पुलिस एक स्थानीय राजद नेता मनोज कुमार पप्पू को गिरफ्तार करने गयी थी। मनोज, शहाबुद्दीन के साथ था। जब पुलिस वहां पहुंची तो शहाबुद्दीन के गुर्गों ने पुलिस पर हमला कर दिया। खुद शहाबुद्दीन ने पुलिस अफसर संजीव कुमार को थप्पड़ जड़ दिया। पुलिस को पीछे हटना पड़ा।
कुछ अन्य थानों की पुलिस को बुला कर एक बार फिर मनोज को गिरफ्त में लेने की कोशिश की गयी। इसके बाद दोनों तरफ से गोलिया चलने लगीं। भयंकर गोली बारी में पुलिस के दो जवान शहीद हो गये जब कि 8 अन्य को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। इसके बाद भी पुलिस शहाबुद्दीन और मनोज पप्पू का नहीं पकड़ पायी थी।