बिहार के जमुई में भगवान भोलेनाथ का एक ऐसा मंदिर है जो 17वीं शताब्दी में बनाया गया था. इस मंदिर का संबंध सतयुग से भी जोड़कर देखा जाता है तथा यहां भगवान भोलेनाथ की एक नहीं बल्कि 108 मंदिर स्थापित किए गए थे. हालांकि स्थानीय लोगों का दावा है कि मुगल शासकों ने इस मंदिर को ध्वस्त कर दिया था और शिवलिंग को भी क्षतिग्रस्त कर दिया था. लेकिन यहां देश का एकमात्र ऐसा जीवित शिवलिंग है, जिसने साल दर साल अपना स्वरूप बदल लिया और जिस शिवलिंग में कभी दरार हुआ करती थी वह पूरी तरह से समाप्त हो गई है.
इतना ही नहीं इस मंदिर का संबंध रामायण काल से भी जोड़कर देखा जाता है तथा ग्रामीणों का दावा है कि काग भूसुंडी जी इस मंदिर में आकर हरि कीर्तन किया करते थे. जिस कारण इस मंदिर का नाम कागनाथ महादेव मंदिर पड़ा है और उनके नाम पर ही इस गांव का भी नाम पड़ा है.
काग भूसुंडी के नाम पर पड़ा है इस पूरे गांव का नाम
ग्रामीण उदय नारायण सिंह ने बताया कि भगवान श्री राम के अनन्य भक्त काग भूसुंडी इस मंदिर में आकर विराजते थे. उन्होंने बताया कि ऐसी कथाएं प्रचलित हैं कि काग भूसुंडी यहां पर आकर हरिनाम का संकीर्तन किया करते थे. जिस कारण इस गांव का नाम भी उनके नाम पर ही पड़ा है. उन्होंने बताया कि जिस गांव में यह मंदिर स्थापित है उसका नाम कागेश्वर है जो काग भूसुंडी के नाम पर है और इस मंदिर का नाम भी कागनाथ महादेव मंदिर है. इसके अलावा यह मंदिर भगवान भोलेनाथ के भक्तों के लिए काफी महत्व रखता है.
ग्रामीण चक्रधर सिंह ने बताया कि यहां 108 शिवलिंग और 108 मंदिर हुआ करते थे. बाद में जब मुगलों ने इस मंदिर को तोड़ दिया तो 17वीं शताब्दी में राजा सुखदेव बर्मन ने यहां पर मंदिर का निर्माण कराया. इसके बाद से ही इस मंदिर की महत्ता काफी है. आज भी गांव में जब खुदाई होती है तब यहां भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग मिलते हैं तथा ऐसी कई कलाकृतियां मिली है जो इस युग की नहीं है, उन्हें भी ग्रामीणों ने सहेज कर रखा है.
शिवलिंग ने खुद बदल लिया अपना स्वरूप
कागनाथ महादेव मंदिर काफी दैवीय भी माना जाता है. ग्रामीण रोहित सिंह ने बताया कि जब हम लोग छोटे थे तो हम अक्सर शिवलिंग में बने एक दरार में चावल, सुपारी या पैसा डाल दिया करते थे. उन्होंने बताया कि जिस वक्त इस मंदिर को तोड़ा जा रहा था उसी वक्त शिवलिंग को भी तोड़ने का प्रयास किया गया, पर उन्हें सफलता नहीं मिली और शिवलिंग के बीचो-बीच एक बड़ी दरार बन गई थी.
वह दरार इतनी बड़ी थी कि उसमें एक सुपारी आसानी से चला जाता था और पुरोहित प्रतिदिन उसे गंगाजल से धोकर साफ किया करते थे. लेकिन धीरे-धीरे समय बीतने के साथ ही इस मंदिर के चमत्कारिक शिवलिंग ने अपना स्वरूप बदल लिया. आज शिवलिंग से दरार पूरी तरह से समाप्त हो गया है तथा ऐसा प्रतीत होता है मानो इसमें कभी दरार थी ही नहीं.