पटना: जहां दूसरों के दुख-दर्द के लिए कोई जगह नहीं और पीड़ा को समझने वाला कोई नहीं। ऐसे में एक रिक्शा चालक इंसानियत का अनूठा बैंक चला रहा हो तो सुखद आश्चर्य होता है। फतेहाबाद, हरियाणा की भूना तहसील में रिक्शा चालक सुभाष और चाय की दुकान चलाने वाली उनकी पत्नी सुमन इंसानियत का अनोखा पाठ पढ़ा रहे हैं। जरूरतमंदों को 500 रुपये तक का तत्काल उधार बिना किसी शर्त देते हैं। यह छोटी सी राशि कुछ लोगों के लिए जीवनरक्षक साबित होती है, तो कुछ के लिए जीवन की उम्मीद।
कमाल के जज्बे को सलाम…
सुभाष महज चौथी कक्षा तक पढ़े हैं। सुमन भी अधिक पढ़ी-लिखी नहीं हैं। लेकिन इनकी सहज सोच अच्छे-खासे पढ़े-लिखों को इंसानियत का पाठ पढ़ाते दिखती है। फतेहगढ़ जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर एक छोटी-सी तहसील है भूना। यहां शहर के एक छोर पर शहीद भगत सिंह पार्क है। वहीं किनारे खड़े एक बड़े से पेड़ के नीचे सुमन चाय की दुकान लगाती हैं। कुछ ईंटें जोड़कर दो ओर आधी-अधूरी सी दीवार और पाइप के सहारे टीन की छत बना रखी है। जुगाड़नुमा इस दुकान में एक ओर लोहे की जाली से घिरा एक छोटा सा काउंटर भी है। इसके ठीक ऊपर एक बोर्ड लगा हुआ है। इसमें लिखा है, इंसानियत बैंक। मायूस मत हो इंसानियत बैंक आपके साथ है…।
इमरजेंसी में 500 रु. तक की सहायता, 10 किमी तक रिक्शा फ्री व फ्री चाय 24 घंटे उपलब्ध…। यह सेवा अपने हक की कमाई खाने वालों के लिए है…। भिखारियों के लिए नहीं…। यह सहायता लेने वाला चाहे तो इस बैंक को एक साल तक वापस भी कर सकता है…। नोट- यह बैंक रिक्शा चालक का है, किसी संस्था या सरकार का नहीं…। जग में आए हैं जग के लिए, जम में जिएंगे जग के लिए…। -रिक्शा चालक सुभाष व सुमन टी स्टाल चौबारा।
दूसरों के लिए बहने वाले आंसुओं को सलाम…
काउंटर पर बैठी चाय बेचने वाली सुमन के पास फटेहाल एक बुजुर्ग रामभज आते हैं। कहते हैं- बहन जी, पत्नी बुखार से तप रही है। बड़ा सुना है आप लोगों के बारे में। 200 रुपये मदद कर दो तो उसकी जान बचा लूं। सुमन की आंखों से अनायास ही आंसू छलक आए। उसने चुपचाप बुजुर्ग के हाथों में 300 रुपये रख दिये। बुजुर्ग का भी गला भर आया। दुआएं बरसीं। सुमन नें उन्हें आराम से बैठाया और पीने को पानी दिया। चाय दी। इतने में सुमन के रिक्शा चालक पति सुभाष भी वहां आ गए। उन्होंने बुजुर्ग को रिक्शा में बैठाया और चल पड़े गंतव्य तक छोड़ने…।
इस बैंक से नकदी मदद के साथ लाचारों को रिक्शा पर बैठाकर 10 किलोमीटर तक मुफ्त यात्रा की सुविधा भी जो दी जाती है। यही नहीं, बेबसों के लिए 24 घंटे फ्री में चाय भी। बगल में ही बाल काटने-दाढ़ी बनाने की दुकान चला रहे आत्माराम बताते हैं कि दोनों पति-पत्नी इसी तरह लोगों की दिल से मदद करते हैं। भरपूर सेवा करते हैं। यहां चाय पीने आए अनिल व कश्मीर सिंह ने बताया कि इस दंपती के जज्बे पर वे नाज करते हैं।
यही इंसानियत का फलसफा है…
सुभाष बताते हैं कि अफीम बेचने के एक झूठे मामले में उन्हें हिसार की जेल में नौ साल तक सजा भुगतनी पड़ी। जेल से बाहर आने पर उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल चुकी थी। सुभाष रातदिन रिक्शा चलाते हैं। इससे 100-150 रुपये की कमाई होती है। करीब इतनी ही कमाई चाय बेचने से सुमन की हो जाती है। दोनों अपनी कमाई का 10 फीसद प्रतिदिन जोड़ते हैं। इसी राशि से वे जरूरतमंद गरीबों की मदद करते हैं। अधिकांश लोग उधार ली हुई रकम देर-सबेर लौटा जाते हैं तो कुछ नहीं लौटा पाते हैं। सुभाष कहते हैं कि इंसानियत बरकरार रहे यही एकमात्र मकसद है। हर इंसान को चाहिये कि वो जरूरतमंद की मौके पर मदद करे, यही इंसानियत का फलसफा है।