‘हिंदी मीडियम’ मूवी रिव्यूः इस देश में अंग्रेजी ज़बान नहीं एक क्लास है!

मनोरंजन

आपने हिंदी मीडियम से पढ़ाई की है? दिल्ली की लाइफ स्टाइल से वाकिफ हैं? इंग्लिश मीडियम स्कूल में बच्चों के एडमिशन की जद्दोजहद से गुजरे हैं? तो फिर आप बिना रिव्यू पढ़े भी ‘हिंदी मीडियम’ देख सकते हैं. निराश नहीं होंगे.

फिल्मः हिंदी मीडियम
अवधिः 150 मिनट
निर्देशकः साकेत चौधरी
कास्टः इरफान खान, दीपक डोबरियाल, सबा क़मर इत्यादि.
रेटिंगः 3.5/5 स्टार

हिंदी मीडियम भले ही कम बजट की फिल्म हो लेकिन इसमें एक दमदार कहानी है, परिस्थितियों में पनपता जबरदस्त हास्य है, बेजोड़ अदाकारी है, ज़ुबान पर चढ़ जाने वाला संगीत है. आप एक बॉलीवुड फिल्म से इतना ही उम्मीद रखते हैं ना? तो फिर आपके लिए फिल्म में एक कॉम्प्लिमेंटरी संदेश भी है.

कहानीः फिल्म की कहानी है पुरानी दिल्ली में रहने वाले कपल राज-मीता और उनकी बेटी पिया की. राज (इरफान खान) की चांदनी चौक में कपड़े की बड़ी दुकान है. लक्जरी कारें हैं. पैसों की कोई कमी नहीं है. बला की खूबसूरत बीवी है. प्यारी सी बच्ची है. राज हिंदी में सोचता है और हिंदी में बोलता है. उसकी बीवी नहीं चाहती जैसे उन दोनों की ज़िंदगी रही है उनकी बेटी पिया भी वैसी ही रह जाए. एक मैगजीन में मीता (सबा क़मर) दिल्ली के टॉप रैंकिंग स्कूलों की लिस्ट देखती है. बस यहीं से फिल्म में हंसी-ठहाकों की ‘रोलर-कोस्टर’ राइड शुरू होती है और आखिर में कुछ नैतिकता के संदेशों के साथ एक सवाल पर आकर थम सी जाती है.

अभिनयः फिल्म देखते हुए अगर आप कास्टिंग को किसी और कलाकार से रिप्लेस करना चाहते हैं तो आपको एक शख्स नहीं समझ आएगा जो इनके रोल को इतनी बखूबी निभा सके. इरफान और दीपक डोबरियाल की अदाकारी ऐसी कि ये आपको आस-पास की ज़िंदगी के किरदार ही नज़र आते हैं.

शुरुआत से इरफान इस फिल्म को अपने कंधे पर लेकर चलते हैं लेकिन दीपक डोबरियाल की एंट्री इसको एक नई ऊंचाई पर पहुंचा देती है. एक ऐसी उंचाई जहां पर इरफान भी थोड़े फीके से लगने लगते हैं. पाकिस्तानी अभिनेत्री सबा क़मर ने भी बॉलीवुड में धमाकेदार उपस्थिति दर्ज की है.

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