हरतालिका तीज भाद्रपद महीने का एक महत्वपूर्ण पर्व है. हिंदू धर्म में हरतालिका तीज व्रत का विशेष महत्व है. यह दिन सुहागन स्त्रियों के लिए बहुत मायने रखता है. भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज मनाई जाती है. साल 2021 में हरतालिका तीज का व्रत 9 सितंबर सिन गुरुवार को रखा जाएगा.
तीज का त्योहार सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत खास होता है. इस दिन सुहागन स्त्रियां व्रत रखती हैं. मां पार्वती और शिव जी की पूजा करके अपने पति की लंबी उम्र और सौभाग्य की प्रार्थना करती हैं. आइए आपको बताते हैं कि सबसे पहले हरतालिका तीज का व्रत किसने रखा था और यह क्यों मनाया जाता है.
एक पौराणिक कथा में हरतालिका तीज की उत्पत्ति व इसके नाम एवं महत्व का वर्णन किया गया है. हरतालिका शब्द, दो शब्दों-हरत व आलिका से मिलकर बना है. जिसमें हरत का अर्थ अपहरण और आलिका का अर्थ स्त्रीमित्र (सहेली) होता है. हरतालिका तीज की पौराणिक कथा के अनुसार, पार्वतीजी की सहेलियों ने पार्वती जी का अपहरण कर घने जंगल में लेकर चली गई थीं. ताकि पार्वतीजी की इच्छा के विरुद्ध उनके पिता उनका विवाह भगवान विष्णु से न कर दें.
तीज का व्रत सबसे पहले राजा हिमालय की पुत्री पार्वती ने रखा था. कहा जाता है जिसके फलस्वरूप उन्हें शंकर जी स्वामी के रूप में प्राप्त हुए थे. इसलिए हरतालिका तीज पर कुंवारी लड़कियां व्रत रखती हैं और अच्छे वर की प्राप्ति के लिए माता पार्वती से प्रार्थना करती हैं. वहीं सुहागनें इस दिन व्रत रखकर माता पार्वती और शिव जी से सौभग्य और पति की लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं. कहा जाता है कि हरतालिका तीज के दिन ही भगवान शिव ने पार्वती जी को पत्नी के रूप में स्वीकार करने का वरदान दिया था. मान्यता है कि इस दिन जो भी कन्या पूरे श्रद्धा भाव से व्रत रखती है उसके विवाह में आ रही बाधाएं दूर होती हैं.
तीज का व्रत
हरतालिका तीज पर निर्जला व्रत रखा जाता है और विधि-विधान से माता पार्वती और शिव जी की पूजा की जाती है. नियमानुसार हरतालिका तीज प्रदोषकाल में किया जाता है. सुबह उठकर स्नानादि के बाद भगवान शिव और माता पार्वती को साक्षी मानकर व्रत का संकल्प लें. दिन भर निर्जला व्रत रहें. सूर्यास्त के बाद के प्रदोषकाल में भगवान शिव और माता पार्वती की रेट से बनी मूर्ति को स्थापित कर पूजा करें. पूजा की दौरान सुहाग की सभी वस्तुओं को माता पार्वती को अर्पित करें. इसके बाद तीज की कथा सुनी जाती है. कथा समापन के बाद महिलाएं मां गौरी से अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं. फिर आरती करने के बाद घर में उत्सव मनाया जाता है और भजन व लोक गीत गाए जाते हैं. यह व्रत करवा चौथ से भी ज्यादा कठिन होता है. महिलाएं पूरा दिन बिना भोजन और जल के ग्रहण किए रहती हैं और दूसरे दिन सुबह स्नान और पूजा के बाद व्रत का पारण करती हैं.
तीज की परंपरा
इस दिन महिलाएं और कुंवारी लड़कियां हरे वस्त्र, हरी चुनरी, हरा लहरिया, हरी चूड़ियां, सोलह श्रृंगार करती हैं और मेहंदी भी लगाती हैं. इस दिन बागों में झूला-झूलने की परंपरा भी है. इस दिन लड़कियों के मायके से श्रृंगार का सामान और मिठाइयां आती हैं. नवविवाहिताओं के लिए यह बहुत खास होता है. इस दिन लोग गीत भी गाए जाते हैं.