इस वर्ष 28 सितंबर से पितृपक्ष की शुरुआत हो रही है, जो 14 अक्टूबर तक चलेगा. पितृपक्ष के दौरान गया में पिंडदान करने का विशेष महत्व है. मान्यता है इस पक्ष में गया में पिंडदान करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है. पितृपक्ष के दौरान पूर्वजों को पृथ्वी लोक में आकर अपने परिवार के लोगों से मिलने का अवसर प्राप्त होता है. इसलिए इस दौरान पितरों की आत्मा की संतुष्टि के लिए पिंडदान, श्राद्ध व तर्पण किया जाता है.पिंडदान व श्राद्ध करने के लिए यूं तो देश भर में कई स्थान है, लेकिन गया को इन महत्वपूर्ण स्थानों में सर्वोपरि माना जाता है. अमूमन पिंडदान में चावल का पिंड बनाया जाता है, लेकिन गया में फल्गु नदी के तट पर चावल की जगह रेत से भी पिंडदान किया जाता है.
माता सीता ने बालू से राजा दशरथ का किया था पिंडदान
विष्णुपद क्षेत्र के पंडा चंदन कुमार कौशिक ने बताया किहिन्दू धर्म के अनुसार पितरों की तृप्ति और उनकी आत्मा की शांति के लिए हर साल पितृ पक्ष में श्राद्ध किया जाता है. पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध के जरिए दिवंगत पूर्वजों को पिंड दान और तर्पण किया जाता है. हिंदू धर्म में गया में बालू से पिंडदान करने का विशेष महत्व है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वनवास के दौरान भगवान राम, भगवान लक्ष्मण और माता सीता के साथ पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया पहुंचे थे.श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने के लिए राम और लक्ष्मण नगर की ओर चले गए तभी आकाशवाणी हुई कि पिंडदान का समय निकला जा रहा है. तभी माता सीता को महाराज दशरथ की आत्मा के दर्शन हुए जो उनसे पिंडदान की मांग कर रहे थे. तब माता सीता ने फल्गू नदी के साथ वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर राजा दशरथ का पिंडदान कर दिया.
सीता कुंड वेदी के पास बालू से पिंडदान करने का है विधान
विष्णुपद क्षेत्र के पंडा चंदन कुमार कौशिक ने बताया कि जब माता सीता ने बालू से ही पिंडदान कर दिया तोराजा दशरथ की आत्मा ने प्रसन्न होकर माता सीता को आशीर्वाद दिया. तब से पितृपक्ष में बालू से पिंडदान करने की परंपरा चली आ रही है.पंडा चंदन कुमार कौशिक ने बताया कि गया में फल्गु नदी के किनारे स्थित सीता कुंड वेदी के पास बालू से पिंडदान करने का विधान है. यहां आज भी फल्गु नदी की बालू से पिंडदान किया जाता है. फल्गु के पवित्र जल से तर्पण करने के बाद तीर्थयात्री अपने पितरों की मुक्ति को लेकर बालू के पिंड से कर्मकांड करते हैं.