गयाजी में होगा यूक्रेन-रूस युद्ध में मारे गए सैनिकों का सामूहिक पिंडदान, वर्षों से जारी है विधान

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पितरों को तृप्त करने की गयाजी में शास्त्रीय विधान रहा है। कालांतर से यहां पुत्र अपने पितृ को तर्पण और अर्पण कर मोक्ष की कामना करते हैं।

इस कामना में पुत्रों द्वारा अपने सभी पितरों यानि माता-पिता के अलावा नानी घर, ससुराल घर और दादी घर के सभी दिवंगत आत्मा के नाम से पिंडदान किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि पुत्र के द्वारा किए गए पिंडादान उनके पुरखों को मिलता है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

इसी विधान के तहत सामूहिक पिंडदान का भी कर्मकांड गयाजी के फल्गु तट पर प्रति वर्ष किया जाता है। यह पिंडदान जाने-अनजाने मृतकों के प्रति श्रद्धा का एक श्राद्ध है, जो दिवंगत आत्मा को मोक्ष दिलाती है।

पुलवामा बलिदानियों का भी किया गया था प‍िंडदान

महामंडलेश्वर स्वामी धर्मदेवजी महाराज, आश्रम हरि मंदिर संस्कृत महाविद्यालय गुरुग्राम से दर्जनों की संख्या में आए सनातनियों ने देश की सीमा पर बलिदान हुए जवानों को सामूहिक रूप से पिंडदान किया था।

एक बड़े से बैनर पर कई बलिदानियों की तस्वीर लगी थी, जिनके नाम लिखे थे। सभी का नाम लेकर पिंड का अर्पण किया गया था। गया की संस्था निर्भया शक्ति ने सीताकुंड वेदी पर पुलवामा हमले में बलिदान हुए सीआरपीएफ के जवानों को सामूहिक पिंडदान उनके मोक्ष की कामना की थी।

बेटे ने जारी रखी पि‍ता की परम्‍परा

देवघाट पर स्थानीय स्व.सुरेश नारायण सिंह अकाल मृत्यु के प्राप्त लोगों की आत्मा के शांति के लिए हरेक वर्ष सामूहिक पिंडदान करते थे, उनके पुत्र चंदन कुमार इस विधान को जारी रखा है।

कुमार ने बताया कि वे जाने-अनजाने सभी अकाल मृत्यु में मृत लोगों का पिंडदान करते आए हैं। इस वर्ष 7-8 अक्टूबर को सामूहिक पिंडदान करेंगे।

इससे यह साफ है कि गयाजी की मोक्ष भूमि पर यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे युद्ध में अकाल मृत्यु प्राप्‍त सैनिकों का भी पिंडदान यहां किया जाएगा। इस तरह इस विधान को कोई न कोई संस्था कायम रखती है और इससे सामूहिक जुड़ाव भी होता है।

अखिल भारतीय विद्वत परिषद के अध्यक्ष आचार्य लालभूषण मिश्र का कहना है कि अपने पूर्वजों, अज्ञात लोगों एवं अकाल मृत्यु को प्राप्त दिवंगत आत्माओं की मुक्ति गयाधाम में गया श्राद्ध से हो जाती है।

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