गणेश चतुर्थी व्रत की कथा जुड़ी है चंद्रदेव से, इस दिन चंद्र दर्शन करने की है परं’परा

आस्था

गुरुवार, 12 मार्च को गणेश चतुर्थी व्रत है। इस तिथि पर प्रथम पूज्य गणेशजी के लिए व्रत उपवास करने की परंपरा है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार इस व्रत की कथा चंद्रदेव से जुड़ी है। चतुर्थी तिथि पर ये कथा पढ़ने-सुनने का भी विशेष महत्व है। जानिए पुण्य बढ़ाने वाली ये कथा…

गणेशजी ने चंद्र को दिया था शाप

पं. शर्मा के अनुसार शिवपुराण में बताया गया है कि प्राचीन समय में भादौ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर गणेशजी का जन्म हुआ था। इस वजह से चतुर्थी तिथि पर गणेशजी के लिए विशेष पूजा-पाठ किया जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार गणेशजी ने शिवजी को पार्वती से मिलने से रोका था। वे अपनी माता पार्वती की आज्ञा का पालन कर रहे थे। पार्वती ने कहा था कि किसी को भी मेरे कक्ष में आने मत देना। जब शिवजी को गणेशजी ने रोका तो शिवजी क्रोधित हो गए और अपने त्रिशूल से गणेशजी का सिर धड़ से अलग कर दिया।

जब पार्वती को ये बात मालूम हुई तो उन्होंने शिवजी से गणेशजी को पुन: जीवित करने के लिए कहा। तब शिवजी ने गणेशजी के धड़ पर हाथी का सिर लगा दिया और उन्हें जीवित कर दिया। इसके बाद एक दिन चंद्र गणेशजी का ये स्वरूप देखकर हंस रहे थे। गणेशजी ने चंद्र को देख लिया। चंद्रदेव को अपने सुंदर स्वरूप का घमंड था। तब गणेशजी ने चंद्र को शाप दिया कि अब तुम धीरे-धीरे क्षीण होने लगोगे।

ये शाप सुनकर चंद्र ने गणेशजी से क्षमा मांगी। तब गणपति ने कहा कि ये शाप निष्फल तो नहीं सकता, लेकिन इसका प्रभाव कम हो सकता है। तुम चतुर्थी का व्रत करो। इसके पुण्य से तुम फिर से बढ़ने लगोगे। चंद्रदेव ने ये व्रत किया। इसी घटना के बाद से चंद्र कृष्ण पक्ष में घटता है और फिर शुक्ल पक्ष में बढ़ने लगता है। पूर्णिमा तिथि पर चंद्र अपना पूर्ण स्वरूप प्राप्त कर लेता है।

गणेशजी के मंत्रों का करें जाप

गणेश चतुर्थी पर भक्त को दीपक जलाकर गणेशजी के मंत्रों का जाप करना चाहिए। मंत्र ऊँ गं गणपतयै नम:। इस मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करना चाहिए। भगवान दूर्वा चढ़ाएं और कर्पूर जलाकर आरती करें।

Sources:-Dainik Bhasakar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *