ये विजय का क्षण कितना भावुक होता है और खासकर उनके लिये जिनकी दुनिया इसी के अगल बगल सिमट जाती है। मेसी के पैरों के जादुई करतब, उनकी जिजीविषा, फुटबॉल और बार्सिलोना के प्रति उनका अगाध प्रेम, पूरी दुनिया में सबसे मशहूर और सौम्य व्यक्तित्व वाले खिलाड़ी होने की पदवी और बहुत कुछ सिमट गया है अर्जेंटीना के लिये विश्व कप का ताज उठाने तक।
पिछली बार माराडोना का ये स्वप्न सच हो गया होता लेकिन फुटबॉल का खेल अनिश्चितताओं से बहुत दूर होता है। इस खेल में एक अकेले खिलाड़ी की बदौलत खेल जीत ले जाने वाले कारनामे दशकों में एक बार होते हैं और उसमें भी पूरी टीम को डेढ़ घण्टे तक उस खिलाड़ी का पूरे दमखम से साथ देना होता है।पिछले विश्वकप में अर्जेंटीना अच्छी टीम के साथ उतरी थी लेकिन विजयश्री ने जर्मन्स के माथे पे सुशोभित होना बेहतर समझा।
बादशाह अपने हर क्षण में विजयी होना चाहता है और इसका प्रतिबिम्ब होता है उसका उसका खेल के प्रति हर क्षण में समर्पण जो मैंने मेसी को खेलते वक़्त देखकर महसूस किया है।एक कमजोर टीम को साथ लेकर मेसी इस कप को वाकई भले न जीत पायें और इंटरनेशनल मीडिया हमेशा की तरह अपने मंसूबों में कामयाब रहे मगर मेसी… मेसी का शोर नहीं रूकेगा,उनके खेल का स्तर नहीं गिरेगा और लीजेंड का ताज उन्हीं के सिर पे रहेगा….
“ये जीत मुबारक हो योद्धा”