त्रासदी जहां जिंदगी बर्बाद करती है वहीं कई बार दिलों को जोड़ भी देती है। ऐसा ही कुछ नजारा देखने को मिल रहा है पश्चिम चंपारण में। बात-बात में एक-दूसरे को मरने-मारने पर उतारू होनेवाले समाज के लोग आज एक ही पांत में जात-पात को खत्म कर रहे हैं।
बाढ़ की त्रासदी के बीच राहत शिविरों में पेट की क्षुधा मिटाने के लिए लग रही लंबी कतारों में हिंदू-मुस्लिम साथ-साथ बैठे हैं। आज उनके बीच न जाति की दीवार है और न ही मजहब के फासले। भूख की तड़प ऐसी कि किसी को इससे मतलब नहीं कि बगल में बैठा पंडित है या मौलवी, या फिर छोटी-बड़ी जाति।
चनपटिया कृषि बाजार समिति का प्रांगण। यहां जिला प्रशासन का बड़ा राहत शिविर चल रहा है। भारी मात्रा में अनाज गिराए गए हैं। खाना बन रहा है। खिचड़ी पककर तैयार है। अभी यह सूचना पूरी तरह प्रसारित भी नहीं हुई कि लोग धड़ाधड़ पांत बनाकर बैठ गए।
भंडार कक्ष सह रसोई से निकाल कर लाई जा रही खिचड़ी को देख इनके चेहरे पर गजब की चमक है। मानो कई दिनों की उनकी मुराद पूरी होने वाली है। इनके बीच न तो आज मजहब की दीवार है और न जाति। सभी एक बगिया के फूल की तरह नजर आ रहे हैं।
इधर, बड़कू चाचा कहते हैं-बाबू, यह नजारा इस बात को प्रमाणित करता है कि व्यक्ति के पास जब अपना कुछ नहीं होता है तो उसके लिए सब एक समान होता है। धन-दौलत का घमंड ही मानवीय रिश्तों को जाति-धर्म और छोटे-बड़े में बांट देता है। वहीं रोहित कहते हैं-प्रकृति ने सब को एक समान रखा है।