आपको आश्चर्य होगा कि आज से करीब 80-90 साल पहले भी पटना में सुपर मार्केट था। अंग्रेजों का बनाया ये सुपर मार्केट आज भी न्यू मार्केट में कबाड़ी दुकानों के बीच स्थित है।
सेंट्रल मार्केट में तब सब्जी, फल, चिकेन, मटन, मसाले यानी किराना और रसोई के तमाम तरह के सामान मिलते थे। अब सिर्फ किराना की दुकान है। फर्श टूट गई है, मगर संरचना जस -की -तस है।
इसी के आसपास पटना का प्रसिद्ध बाजार न्यू मार्केट विकसित हुआ। ट्रेन पकड़कर दूर-दराज से आने वाले लोगों के लिए न्यू मार्केट खरीदारी की सबसे सुलभ जगह थी।
देश का पहला व्यवस्थित मार्केट अशोक राजपथ पर सब्जीबाग के पास आजादी के समय बसाया गया। नाम पड़ा- पटना मार्केट। आज भी 1947 में बना पटना मार्केट का गेट इस बात की मुनादी करता है।
शुरू में दुकानदार यहां जमीन पर चादर बिछाकर सामान बेचते थे। फिर लगातार विकास होता गया। यह शुरुआत में मुख्य रूप से कपड़ों का बाजार था। तब लोग कपड़े सिलवाकर पहनते थे, इसलिए वहां दर्जी भी बसते चले गए।
लेडीज टेलर भी और जेंट्स टेलर भी। महिलाएं आने लगीं तो सौंदर्य के बाजार भी सजने लगे। अशोक राजपथ पर जेवर की दुकानें खुलने लगीं। फैशन और खूबसूरती का केंद्र बनने के साथ ही युवाओं का यह अड्डा बनता गया।
गांधी मैदान के समीप 1959 ई. में हथुआ महाराज बहादुर वीरेंद्र प्रसाद शाही ने इस बाजार की स्थापना की थी। बारी पथ पर लगभग तीन एकड़ में बने हथुआ मार्केट ने पटना के लोगों को बाजार का नया विकल्प दिया।
हथुआ मार्केट एसोसिएशन के अध्यक्ष मुकेश जैन कहते हैं, यहां के दुकानदारों एवं ग्राहकों के बीच कई पीढिय़ों का रिश्ता है। आज भी यहां आए बिना शादियों की शॉपिंग पूरी नहीं होती।