पटना हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति लीला सेठ को श्रद्धांजलि दी गयी और कानून के क्षेत्र में उनके योगदान को याद किया गया।
गौरतलब है कि उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत में यहां करीब 10 साल तक एक वकील के रूप में प्रैक्टिस की थी। मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन ने करीब आधे घंटे तक चली शोकसभा की अध्यक्षता की। उनके अदालत कक्ष में शोकसभा का आयोजन किया गया था।
भारत में किसी राज्य की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति लीला सेठ का पिछले सप्ताह ही निधन हुआ, लेकिन जिन लोगों ने पटना में लीला सेठ के साथ समय बिताया है उनके जेहन में आज भी आंटी लीला के रूप में उनकी यादें जिंदा हैं।
लीला सेठ के निधन ने वकील केडी चटजर्ी की यादों का द्वारा खोल दिया। लीला जब वकील थीं तब चटजर्ी एक छोटे बालक थे। वर्ष 1959 में लीला अपनी वकालत के लिये पटना से तत्कालीन कलकत्ता :अब कोलकाता: आयी थीं।
चटजर्ी ने कहा कि उनके शानदार कॅरियर से अधिक जो बात उन्हें अधिक लुभाती थी वह है बच्चों के प्रति उनका स्नेह। चटजर्ी के पिता उस वक्त लीला के वरिष्ठ और पारिवारिक मित्रा थे।
उन्होंने पीटीआई-भाषा को बताया, हम स्कूली बच्चों के आस पास आंटी लीला की मौजूदगी ही हमें खुश कर देती थी। सफेद खंभों पर टिके अपने खूबसूरत बंगले में वह जन्मदिन के शानदार जश्न मनाती थीं और विदेश भ्रमण से आकर हमें प्यारे प्यारे उपहार देती थीं।
उन्होंने कहा, अपने आखिरी दिनों तक उन्होंने अपनी वही विनम्रता और गर्मजोशी बनाये रखी जिसे हमने अपने बचपन के दिनों में महसूस किया था।
मेरा मानना है कि एक न्यायाधीश के तौर पर कानून बिरादरी में जो चीज उन्हें वाकई में दूसरों से अलग करती थी वह थी उनकी मिलनसारिता क्योंकि आमतौर पर न्यायाधीश अलग थलग रहना और लोगों से कम मिलना जुलना पसंद करते हैं। यहां तक सेवानिवृत्ति के बाद भी वह एेसी ही थीं।
अधिवक्ता केडी चटर्जी ने बताया कि पूर्ण अदालत की परंपरा के अनुसार उनको श्रद्धांजलि देने के लिए सभी न्यायाधीश और वकील एकत्रित हुए और पटना हाईकोर्ट में उनके कैरियर को याद किया।