बहुत बड़ी गलती कर दी पढ़ा के। पढ़ाना ही नहीं चाहिए था। अच्छा होता गांव में रखता, ना इतने उच्च विचार होते, ना ही हमारे खिलाफ आवाज़ उठाने की सोचती। अगर आप एक छोटे शहर की लड़की हैं और पित्रसत्तात्मक समाज में पली बढ़ी हैं तो ये बातें अक्सर आपको अपने मां बाप से और आपके माता पिता को समाज से सुनने को मिलती होंगी।
लड़की बाहर पढ़ती है, हमेशा से शहर में रही है, फैशनेबल कपड़े पहनती है, नंबर अच्छे लाती है, लंबी-लंबी कहानियां लिखती है, कभी जात-पात पर बोलती है तो कभी स्त्रीविरोधी समाज पर। वो हंसती है, खेलती है, कई तरह के लोगों से मिलती है, कई ईनाम भी जीतती है- गर्व की बात है। एक बाप होने के नाते सीना चौड़ा हो जाता है, मां होने के नाते कलेजा भर आता है। समाज का नाम ऊंचा होता है। सबको ऐसी ही बेटी दे भगवान, दूसरों को ये आशीर्वाद तक दे दिया जाता है।
पर कब तक? कब तक आप एक मिसाल बनकर खड़ी रहती हैं? कब तक समाज और आपके घरवाले दोनों आपकी तरफदारी में लगे होते हैं? कब तक गांव की लड़कियों को आपका उदाहरण देकर ,बाहर पढ़ने भेजा जाता है?
जब तक घर में आपने अपनी आज़ादी की बात न की हो?
अपना साथी खुद चुनने का हक ना मांगा हो?
खुद की मर्जी वाला कोई अलग कोर्स करने की चाह न रखी हो?
शादी करने से न मुकरी हों?
जी, ये कुछ ऐसी बातें अगर आप अपने घर में रखेंगी तो आप उसी पल पतित घोषित हो जायेंगी। फिर समाज आपको गालियां देगा। अपनी बेटी को रोज धमकायेगा कि उस लड़की जैसी हुई तो तेरी पढ़ाई बंद। मां-बाप मातम मनाने लगेंगे, रोएंगे कि किस काले मुहूर्त में इसे पढ़ाने का सोचा था। अच्छा-भला गांव में रखा होता।