आमतौर पर जहां निजी प्रैक्टिस करने वाले चिकित्सकों की फीस में लगातार बढ़ती रहती है।
वहीं बिहार के अररिया जिले के एक चिकित्सक ऐसे भी हैं जो 55 वर्षो से प्रत्येक रविवार को न केवल मरीजों का मुफ्त में इलाज करते हैं, बल्कि दवा भी मुफ्त उपलब्ध कराते हैं।
कहा जाता है कि 93 वर्षीय चिकित्सक वीरेंद्र कुमार वर्मा कई परिवारों की चार पीढ़ियों तक की सेवा कर चुके हैं।
अररिया के कालीबाजार निवासी डॉ. वर्मा काफी उम्र होने के बावजूद मरीजों का इलाज उसी उत्साह से कर रहे हैं, जैसे कोई आज के युवा चिकित्सक करते हैं।
वह कहते हैं कि उन्होंने कभी चिकित्सा को अर्थोपार्जन का साधन नहीं समझा, बल्कि इसे जनसेवा मानते हैं।
उन्होंने कहा कि पिछले 55 वर्षो से प्रत्येक रविवार को वह नि:शुल्क मरीजों का इलाज करते हैं।
उन्होंने याद करते हुए आईएएनएस को बताया कि वर्ष 1962 में अररिया जिले में महान कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु का औराही हिंगना गांव कालाजार की चपेट में था।
इस दौरान एक बच्चे को खो चुके एक दंपति ने उनके पास आकर कहा था कि पैसे के अभाव में एक बच्चे को खो चुके हैं। यह दूसरा बच्चा भी बीमार है। घर में बर्तन बेचकर आपकी फीस का इंतजाम किया है।
‘उस दंपति की बात मेरे दिल को छू गई’
डॉ़ वर्मा कहते हैं, “मैंने उस बच्चे का नि:शुल्क इलाज किया और वह कुछ दिन में स्वस्थ हो गया। कुछ दिनों बाद उस दंपति ने आकर मेरा शुक्रिया अदा किया।
उसी दिन मैंने तय कर लिया था कि अब सप्ताह में एक दिन मरीजों का इलाज मुफ्त में करूंगा और वह सिलसिला आजतक चल रहा है।”
हर संडे मेरा क्लीनिक मरीजों के लिए फ्री
रविवार को डॉ़ वर्मा न केवल नि:शुल्क गरीब, लाचारों का इलाज करते हैं, बल्कि उन्हें मुफ्त में दवा भी उपलब्ध कराते हैं। अगर किसी कारणवश क्लीनिक बंद हुआ, तो उनका आवास भी ऐसे मरीजों के लिए 24 घंटे खुला रहता है।
1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान सैनिकों की सेवा की
वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग ले चुके डॉ़ वर्मा बताते हैं कि वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान पूर्वोतर राज्य के सैनिक इसी रास्ते दिल्ली आते-जाते थे।
उस दौरान भी उन्होंने कटिहार में कैम्प लगाकर सैनिकों और नागरिकों को स्वैच्छिक सेवाएं दीं।
1964 नेपाल भूकंप में विराटनगर में कैंप लगाया
वर्ष 1964 में नेपाल में आए भूकंप के दौरान भी डॉ़ वर्मा ने विराटनगर में कैम्प लगाकर लोगों को नि:शुल्क सेवाएं दीं। वर्ष 2008 में कोसी में आई प्रलयंकारी बाढ़ के दौरान भी उन्होंने पूरे उत्साह के साथ गरीबों के बीच अपनी सेवाएं दीं।
डॉ़ वर्मा को बिहार सरकार ने सम्मानित किया
वर्ष 1961 में डॉ़ वर्मा को चिकित्सा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए बिहार सरकार ने सम्मानित भी किया था। इंडियन रेडक्रॉस सोसाइटी में 16 वर्षो तक मानद सचिव रहे डॉ़ वर्मा गर्व से कहते हैं कि आज उनके पास ऐसे परिवार भी आते हैं, जिनकी चौथी पीढ़ी का वह इलाज कर रहे हैं।
उन्होंने बताया कि हर रविवार को उनके पास करीब 250 से 300 मरीज पहुंचते हैं।
आजादी के बाद कोलकाता से दरभंगा आ गए
अपनी शिक्षा-दीक्षा के विषय में उन्होंने बताया कि उनकी मेडिकल की आधी शिक्षा कोलकाता से, जबकि आधी दरभंगा में हुई। वह कहते हैं कि आजादी के बाद जब देश का बंटवारा हुआ था, तब वह कोलकाता से दरभंगा आ गए थे। डॉ़ वर्मा की प्रारंभिक शिक्षा अररिया में हुई थी।
‘कुछ लोग आज इसे व्यवसाय बना चुके हैं’
महात्मा गांधी, जय प्रकाश नारायण के साथ दिन गुजार चुके डॉ़ वर्मा कहते हैं कि चिकित्सा वास्तव में ‘सेवा’ है, लेकिन कुछ लोग आज इसे व्यवसाय बना चुके हैं, जो गलत है। मानवता के खिलाफ है।
डॉ़ वर्मा पृथ्वी पर साक्षात भगवान हैं : ग्रामीण
अररिया के ग्रामीण राधेश्याम बताते हैं कि इस दुनिया में चिकित्सकों को जो ‘भगवान’ का दर्जा दिया गया है, वह ऐसे ही डॉक्टरों के कारण मिला है।
वह कहते हैं कि डॉ़ वर्मा कई लोगों के लिए पृथ्वी पर साक्षात भगवान हैं।
मेरे पिता पर मुझे गर्व : डॉ़ वर्मा के पुत्र
डॉ़ वर्मा के पुत्र सुदन सहाय को भी अपने पिता पर गर्व है।
वह कहते हैं कि उनके पिता जी आज भी अपना काम स्वयं करते हैं। वह सेवाभाव से काम करने वाले चिकित्सकों के लिए आदर्श हैं।