बालू खनन के दौरान अगर डॉल्फिन या घड़ियाल गंगा या उनकी सहायक नदियों में दिखता है तो तत्काल बालू निकालने की प्रक्रिया रोक देनी है। उसके बाद स्थानीय जिला वन पदाधिकारी को सूचित करने के बाद आगे कोई कदम उठाना है। जिला खनन पदाधिकारियों की ओर से परामर्श मांगने के बाद जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की ओर से यह बात कही गई है। कई जिला खनन पदाधिकारियों से अपने-अपने जिलों में डॉल्फिन की सघन स्थिति वाले केंद्रों की जानकारी जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की ओर से मांगी गई थी।
जूलॉजिकल सर्वे की ओर से कहा गया है कि किसी खास समय-सीमा में डॉल्फिन की किसी खास नदी में सटीक स्थिति के बारे में बताना मुश्किल है, क्योंकि गंगा में डॉल्फिन काफी तादाद में हैं। वहां से बिहार की दूसरी सहायक नदियों में भी डॉल्फिन और घड़ियाल का आवागमन होता रहता है। ऐसी स्थिति में नदियों के हर बालू घाट पर सतर्कता बरतने की जरूरत है। बालू खनन के दौरान दुर्लभ जलीय जीवों के जीवन पर संकट नहीं पैदा होना चाहिए।
ज्ञात हो कि प्रदेश में कहलगांव के पास स्थित गंगा और दूसरे कई जगहों पर डॉल्फिन के प्राकृतिक वास स्थान हैं। वहां वे प्रजनन भी करती हैं। इसके अलावा प्रदेश की अन्य नदियों में दूसरे स्थानों पर भी इनका आवागमन होता रहता है। बालू घाटों के बनाए जा रहे सर्वे रिपोर्ट में इन तथ्यों का उल्लेख किया जा रहा है। साथ ही एहतियातन कदम उठाने के तरीकों के बारे में भी जानकारी दी गई है।