श्री विवाहोत्सव के प्रधान प्रचारक एवं मिथिला के सुप्रसिद्ध कवि
श्री मोदलता जी का समाधि स्थल अब प्रेमी भक्तो के लिए एक दर्शनीय दिव्य तीर्थ स्थल बन गया है । महाराज जी की जीवन अवस्था में जो भारत भक्त उन्हें अपना दुःख शोक सुनाकर, अपने कष्टों की उनसे शांति पाते थे, वे सभी अब महाराज जी के समाधि पर, अपना दुखड़ा रोने सुनाते। प्रत्येक की कष्ट दूर होने लगी । मनोरथ सिद्धि होते देखकर, कष्टोंपत्र भक्तो की भीड़ अधिक जुटने लगी ।
श्री सिया रसिक शरण जी के मीठी मीठी नाम कीर्तन की मनोहर ध्वनि से उस स्थल के प्रति दिनानुदिन श्रधालु भक्तों का आकर्षण बढ़ने लगा । लोग कुटिया वाले फूस के झोपड़े उठा उठा कर वही खड़े करने लगे । धीरे धीरे गाँव वाली संपूर्ण कुटिया उठकर वही चली आई । उसी नवीन कुटिया का नाम पड़ा मोद मंदिर । नाम बड़ा ही सार्थक रहा ।
आप यहाँ पधारे और आप का हृदय दिव्य मोद से परिपूर्ण हो जायेगा । यहाँ अब संत सेवा और श्री मंदिर बिहारी की सेवा हो रही हैं ।
श्री मिथिलेश्वर् प्रसाद सिंह महाराज श्रीकौजी वितावस्था में ही उन्हें वचन दे चुके थे, कि आपकी समाधि पर मंदिर बनेगा । अपने वचन के अनुसार मंदिर बनने की व्यवस्था कर के दिव्य धाम को चले गये ।
श्री शत्रुघन शरण जी महाराज एवं श्री सिया रसिक शरण जी महाराज के कठिन परिश्रम और भक्तो के सहयोग से मंदिर बनकर तैयार हों चुका हैं । श्री मोद मंदिर में अब भी प्रत्येक साल अगहन मे विवाह पंचमी के अवसर पर बड़े धूम धाम से श्रीविवाहोत्सव होता है । श्री सीता राम विवाह कीर्तन के प्रधान प्रचारक की समाधि पर, श्री मिथिला देश में सब जगहो से अधिक समारोह से विवाहोत्सव होना स्वभाविक है उत्सव भक्त संसार के लिए दर्शनीय हैं ।
श्री मोद मंदिर के नये महंथ श्री अवधेश शरण जी महाराज हैं ।