अक्सर दिव्यन्गता (विकलांगता) को बेबसी और लाचारी का पर्याय माना जाता है. समाज में दिव्यांग जनों को दया के भाव से देखा जाता है. लेकिन महान खगोल वैज्ञानिक स्टीफन हाकिंग को अपना आदर्श मानने वाले शंकर सिंह ने इन सारी मान्यताओ और वर्जनाओ को दरकिनार करते हुये एक ऐसा आदर्श स्थापित किया है जो न केवल अन्य दिव्यांगो को प्रेरित करती है बल्कि सामान्य लोगो के लिये भी प्रेरणा स्रोत है.
पोलिओ के कारण ९० प्रतिशत शारीरिक क्षमता खो देने वाले शंकर ने अपनी बौद्धिक क्षमता से वो सभी कार्य किये है और कर रहे है जो उनकी उम्र के सामान्य लड़के सोच भी नहीं सकते. हालाँकि उम्र के इस छोटे से पड़ाव में शंकर को कई भेद भाव और असफलताए भी देखने को मिली लेकिन इन सबसे प्रभावित हुये बिना वो निरंतर प्रयास कर रह रहे है. शंकर ने प्रतिष्ठित नवोदय विद्यालय की परीक्षा उत्तीर्ण की थी लेकिन सरकारी नियमो के कारण उन्हें विद्यालय में प्रवेश नहीं मिला.
इससे बिना प्रभावित हुए शंकर ने गाँव के ही सरकारी विद्यालय में अध्ययन जारी रखा . अपनी कुशाग्र बुद्धि से इन्होने राष्ट्रीय स्तर के नेशनल साइंस टैलेंट सर्च एग्जाम- 2008 और नेशनल टैलेंट सर्च एग्जाम- 2008 उत्तीर्ण किया एवं साथ ही साथ 2010 में शंकर को अजब-दयाल सिंह शिक्षा सम्मान भी दिया गया.