पूर्वी चंपारण की उर्वर भूमि ऐसी है जिसपर पसीना बहा देने से जमीन सोना उगलने लगती है. इसी उर्वर जमीन पर पूर्वी चंपारण के कोटवा प्रखंड के रहने वाले किसान प्रयागदेव सिंह ‘रेड चावल’ की खेती करके एक नया इतिहास रच रहे हैं. किसान श्री सिंह कहते हैं कि यह चावल तमिलनाडु की एक वैरायटी है. चावल एकदम जीरा की तरह पतला होता है. वहीं एक बार खेत में रोपनी के बाद दो बार फसल काटी जाती है. इस चावल को पकाने में लगभग एक घंटे का समय लगता है.
किसान प्रयाग देव सिंह कहते हैं कि रेड चावल की खासियत यह है कि इसे एक बार लगाने पर पहली कटाई 110 दिन बाद होती है. वहीं, दूसरी बार 30 दिन में ही काटा जा सकता है. पहली कटाई में प्रति कट्ठा 40 केजी का उत्पादन होता है, तो वहीं दूसरी कटाई में 25% कम पैदावार के साथ 30 केजी प्रति कट्ठा का उत्पादन होता है.
रेड चावल में पाया जाता है एंटीऑक्सिडेंट
प्रयाग देव सिंह कहते हैं कि बताते हैं कि यह कम पानी में तैयार होने वाला चावल है. यही कारण है कि इसकी बुवाई ऊंचे स्थानों पर होती है. यह किसी भी मिट्टी में तैयार हो जाता है. दावा किया जाता है कि इस चावल के सेवन से हड्डी और दांत मजबूत होते हैं. चावल में एंटीऑक्सिडेंट पाए जाते हैं. अन्य कई रोग में भी लाभदायक है. इसके अलावा वेब्लैक, ग्रीन, मैजिक, अम्बे मोहर के साथ ही कई स्थानीय वैरायटी के धान की भी अत्याधुनिक विधि से खेती करते हैं.
ठंडे पानी में बनाया जाता है ये चावल
किसान प्रयाग देव सिंह कहते हैं कि ग्रीन चावल बासमती की तरह ही सुगंधित चावल है. चंपारण की मिट्टी में आने के बाद इसका स्वाद और भी बढ़ जाता है. उन्होंने बताया कि ‘चाक हाओ’ मणिपुर वैरायटी का एक ब्लैक चावल है. जिसे GI टैग प्राप्त है. जो लाल मिट्टी पर काफी खुशबूदार उपजता है, जबकि पूर्वी चंपारण में इसमें हल्का खुशबू होता है. दूसरी ओर, असम के ब्रह्मपुत्र घाटी में बड़े पैमाने पर उगाए जाने वाले “बोका-चोकुवा चावल” को ही मैजिक चावल के नाम से जाना जाता है. इस चावल को भारत सरकार की तरफ से GI टैग प्राप्त है. मैजिक धान के चावल को आप ठंडे पानी में तैयार कर लेंगे और दूध, दही, घी आदि के साथ खा सकते है.