उत्तरायणी गंगा के तट पर बसा सिद्धाश्रम बक्सर अब जैविक कॉरिडोर के रूप में विकसित होने जा रहा है. धान का कटोरा कहे जाने वाले बक्सर की पहचान रह चुका सोनाचूर चावल जैविक खाद के उपयोग से उपजाया जाएगा और इसकी खुशबू न सिर्फ देश बल्कि विदेशों में भी बिखरेगी. इसके लिए कृषि विभाग अपनी तैयारियां पूरी कर चुका है. फिलहाल जैविक कॉरिडोर योजना फेज वन के तहत बक्सर में 5000 एकड़ में जहां खेती शुरु हो गई है. वहीं, फेज-2 में जल्द ही इसे और भी विस्तार दिया जाएगा.
बक्सर की पहचान सोनाचूर चावल को बिहार सरकार की महत्वकांक्षी योजना “वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्ट” के तहत जीआई टैग दिलाने का कार्य भी जल्द पूरा हो जाने की उम्मीद है. जिसके बाद इसकी ब्रांडिंग और बेहतर पैकेजिंग कर इसे देश-विदेश तक प्रचारित किया जाएगा. दरअसल, सोनाचूर चावल धान का एक ऐसी वेरायटी है जिसके दाने बारीक और खुशबू इतनी अच्छी होती है कि इस चावल का स्वाद जिसने भी एक बार चखा वह दीवाना बन गया. इस चावल की खेती तो किसान करते हैं, लेकिन व्यवसायिक दृष्टिकोण से होने वाली परेशानियों के मद्देनजर इसका उत्पादन अपेक्षित ढंग से नहीं हो पाता. किसान बताते हैं कि यह चावल महंगा होने के कारण इसके ज्यादा खरीदार नहीं मिलते. ऐसे में कतरनी तथा मिनी मंसूरी चावल की खेती पर ज्यादा ध्यान देना पड़ता है.
ई-कॉमर्स साइट पर सोनाचुर चावल का होगा खरीद-बिक्री
हुए कृषि विभाग के डीपीएमयूऋषभ राज ने बताया कि जैविक कॉरिडोर योजना के फेज-टू में सोनाचूर चावल के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास किया जा रहा है. जल्द ही इस चावल को जीआई टैग मिल जाएगा. जिसके बाद यह चावल बक्सर की पहचान के रूप में देश-विदेश में जाना जाएगा. कृषि विभाग के डीपीएमयू ऋषभ राज बताते हैं कि फिलहाल जैविक कॉरिडोर योजना के तहत सोनाचूर चावल की खेती बक्सर में कई किसान कर रहे हैं. इस बार लगभग 5000 एकड़ में किसानों ने इसकी खेती की है. वहीं इस चावल को बाजार तक पहुंचाने की जिम्मेदारी डुमरांव फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी ने ली है, जो जैविक विधि से उपजाये गए इस चावल को आरा, पटना, रांची, वाराणसी, कोलकाता और दिल्ली तक में आसानी से ग्राहकों तक पहुंचा रही है. जल्द ही ई-कॉमर्स साइट से जोड़कर ऑनलाइन विक्रय का बंदोबस्त किया जाएगा. जिसके बाद लोग घर बैठे यह चावल मंगवा सकेंगे.
गंगा के जल से मिलता है फसल को पोषण
डीपीएमयू ऋषभ राज ने बताया कि जैविक कॉरिडोर फेज-2 के तहत ब्रह्मपुर, चक्की, सिमरी, बक्सर, डुमरांव, केसठ, राजपुर, चौसा आदि इलाकों में किसान खेती कर रहे हैं. गंगा के किनारे का इलाका इस फसल की उपज के लिए बेहद उपयुक्त माना जा रहा है. जहां गंगा के जल से सिंचाई होती है, वहीं इस फसल में खाद का भी बेहद कम मात्रा में प्रयोग होता है. जैविक खाद से ही यह फसल उगाई जा रही है और आने वाले दिनों में जैसे-जैसे इसकी खेती बढ़ेगी तो जैविक खाद का उत्पादन बढ़ाना पड़ेगा. जिसके लिए विभाग तैयार है.
फसल के आस-पास हिरण का रहता है बसेरा
अब इसे सोनाचूर चावल का प्रभाव कहें अथवा कुछ और, जहां भी इसकी खेती होती है उस इलाके के आस-पास बहुतायत में हिरण पाए जाते हैं. किसान यह भी बताते हैं कि सोनाचूर चावल की खुशबू से हीं मृग आकर्षित होकर उसके आस-पास ही रहते हैं, लेकिन यह कभी भी धान की फसल को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. ऐसे में सोनाचूर चावल की खेती करना किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है.