कहते हैं, जज़्बा और जूनून हो तो इस दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं। आज जहां दो कदम चलने में भी लोगों के पसीने छूटने लगते हैं, भगवान की पूजा-पाठ करने भी लोग एयरकंडीशन गाड़ियों से जाते हैं।वहीं जीवन के 68 वसंत पार कर चुकी पेशे से शिक्षिका रहीं मुज़फ़्फ़रपुर की कृष्णा बम पिछले 37 सालों से सावन में प्रत्येक रविवार को पैदल डाक बम के रूप में झारखंड की पथरीली पहाड़ियों को पार कर बाबा को जल चढ़ाने पहुंचती हैं।
आज कृष्णा बम श्रावणी मेले में किसी परिचय की मोहताज नहीं। जब सुल्तानगंज से वे जल भर कर देवघर के लिए निकलती हैं, तो पूरे रास्ते में उनके दर्शन को लोगों का हुजूम लग जाता है।
बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर की रहने वाली कृष्णा सिर्फ़ मां कृष्णा बम ही नहीं बन गई हैं। बल्कि लोगों के लिए ये आस्था का प्रतीक भी हैं। उन्हें देखने और उनसे आर्शीवाद लेने के लिए रास्ते में हजारों लोग पंक्तिबद्ध खड़े रहते हैं।
सावन के प्रत्येक सोमवार को कृष्णा ‘डाक बम’ के रूप में देवघर पहुंचती हैं और बाबा वैद्यनाथ का जलाभिषेक करती हैं। पूरे कांवरिया पथ पर अब कृष्णा बम की खास पहचान बन गई है।
वे सुल्तानगंज में जल भरने के बाद 12 से 14 घंटे में देवघर पहुंच जाती हैं। उनके दर्शन के लिए आधा घंटा पहले से कांवरिया मार्ग पर दोनों तरफ लोग लाइन में लग जाते हैं और उनके दर्शन के लिए बेचैन रहते हैं।
यहां तक कि उनके पैर छूने के लिए भी लोग लालायित रहते हैं। भगदड़ से बचने के लिए अब उनकी सिक्योरिटी में पुलिस लगी रहती है। कांवर यात्रा को लेकर कृष्णा बम कहती हैं कि विवाह के बाद उनके पति नंदकिशोर पांडेय हैजा से पीड़ित हो गए थे।
दिनों-दिन उनकी हालत खराब होती जा रही थी। तब उन्होंने संकल्प लिया कि पति के ठीक होने पर वह कांवर लेकर हर साल सावन में बाबा वैद्यनाथ का जलाभिषेक करेंगी।
भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना सुन ली और तभी से वे हर साल यहां पूरे श्रद्धा भाव से जलाभिषेक करने आती हैं। इतना ही नहीं, साइकिल से वे 1900 किलोमीटर तक वैष्णो देवी की यात्रा भी कर चुकी हैं।
साथ ही हरिद्वार से बाबाधाम, गंगोत्री से रामेश्वर और कामरूप कामाख्या तक साइकिल से ही यात्रा कर चुकी हैं कृष्णाक बम।